14. श्री अकाल तख्त साहिब जी के
सम्मुख एक पीड़ित ब्राह्मण की पुकार
13 अप्रैल, 1763 की वेशाखी के महोत्सव के समय ‘सरबत खालसा’ सम्मलेलन होना निश्चित
था। दूर-दूर से सिक्ख संगत अथवा योद्धा श्री दरबार साहिब जी के दर्शनों के लिए
अमृतसर पधारे। सभी सरदार और मिसलदार अपने अपने जत्थों के संग जब अकाल तख्त के समक्ष
आयोजित दीवान सरबत खालसा सम्मेलन में भाग ले रहे थे। ठीक उसी समय एक युवक हाथ बाँधे,
दीवान में उपस्थित हुआ। वह पँजाब के कसूर नगर से आया था। उसने गुहार लगाई की कि
कसूर क्षेत्र के हाकिम असमान खान ने उसकी नवनवेली दुल्हन, जिसकी वह उस समय डोली अपने
घर ले जा रहा था, रास्ते में छीन ली है। अतः उस अत्याचारी से उसे उसकी पत्नी वापिस
दिलवा दी जाए। वह इस कार्य के लिए बहुत आशा लेकर खालसा पँथ से निवेदन करता है
क्योंकि उसे ज्ञात हुआ है कि गुरू पँथ ही दीन दुखियों का रक्षक है। अतः वह सहायता
प्राप्ति हेतु पूर्ण भरोसे से गुरू पँथ के सँरक्षण में हाज़िर हुआ है। सँयोगवश उसी
समय ‘कीर्तनी जत्था’ श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी द्वारा वीर रस से रचित शब्द
सवैंया गायन करके ही हटे थे ‘देहु शिवा वर मोहि इहै, शुभ करमन से कबहूं ना टरो’। दल
खालसा के नायक सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया जी ने यह चीत्कार बहुत ध्यान से सुनी,
वह उस समय करूणामय पुकार से भावुक हो उठे। वह अपने को रोक न सके, उन्होंने उसी समय
म्यान से तलवार खींच ली और अपने योद्धाओं को इस प्रकार ललकाराः सिक्ख वीरो ! यह
परीक्षा की घड़ी है, फरियादी अकाल तख्त के सम्मुख हाज़िर हुआ है। यहाँ से कोई फरियादी
निराश नहीं जाता, यही गुरूदेव का बिरद है क्योंकि इस तख्त का निर्माण सँसार में हो
रहे अन्याय को रोकने के लिए किया गया है। सत्य और न्याय की रक्षा ही हमारा मूल
उद्देश्य है, जिसे हमें निष्ठा से कर्त्तव्यपरायण होकर पूर्ण करना चाहिए। ‘दल खालसा’
के नायक जस्सा सिंह के जोशीले शब्दों का तुरन्त चारों ओर प्रभाव देखने को मिला
परन्तु कुछ सरदार इस विषय में गम्भीर रूप में विचारविमर्श करना चाहते थे।
इस पर उन्होंने आपस में परामर्श किया। उनके विचार से कसूर नगर
पठानों का गढ़ है। असमान खान एक अनुभवी सेनापति और उच्चकोटि का योद्धा है। हम लोगों
ने अभी बड़ी कठिनाई से सुख की साँस ली है। अभी हमारी कई योजनाएँ अधूरी पड़ी हुई हैं।
इसके अतिरिक्त कसूर नगर में कई छोटे किले भी हैं, जिनमें बहुत सी युद्ध सामग्री हो
सकती है। इसके विपरीत हमारे पास पूर्ण सेना भी नहीं है। ऐसे अभियानों में कम से कम
दस हजार सिक्ख शहीद हो सकते हैं। इस पर बात भी केवल एक स्त्री को लौटा लाने की है,
जिसके लिए दस हजार जवानों की बलि दी जाए। क्या दूरदर्शिता होगी ? अतः खालसा जी को
भावनाओं में नहीं बहना चाहिए, बल्कि सूझबूझ से पग उठाना चाहिए। ऐसे में सरदार जस्सा
सिंह का मुख आवेश में तमतमा उठा। उन्होंने गर्जते हुए कहा कि ‘यह ब्राह्ममण किसी
व्यक्ति के पास नहीं आया, यह तो गुरू पँथ के पास आया है, यह गुहार अकाल तख्त पर कर
रहा है, एक अबला नारी की रक्षा के लिए। अकाल तख्त तो मीरी पीरी के सच्चे पातशाह का
है। यदि उसके अनुयायी एक फरियादी का मान न रखकर घाटे लाभ की सौदेबाज़ी में पड़कर
‘सिदक, श्रद्धा विश्वास हार जाएँगे तो कल को कौन हमारे गुरू जी को दुष्ट दमन कहेगा
और कौन उनके परोपकारों पर विश्वास करेगा कि ये गुरू के दर्शाए आदर्श मार्ग पर चलकर
मर मिटने को तैयार हैं ? सरदार जस्सा सिंह जी की ललकार में तथ्य था। अतः तुरन्त
निर्णय लिया गया कि श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी से हुक्मनामा लिया जाए जो हुक्म होगा
वैसा ही किया जाएगा। तभी ग्रँथी सिंघ जी ने हुक्म लिया, तो निम्नलिखित वाक (हुक्म)
हुआः
धिर घरि बैसहु हरजन पिआरे।। सतिगुरू तुमरे काज सवारे ।। रहाउ
।।
दुष्ट दूत परमेशर मारे ।। जन की पैज रखी करतारे ।।
गुरू जी का हुक्म स्पष्ट था। अब देर किस बात की थी। ऐसी मनोदशा
में जयकारों की गूँज प्रत्येक दिशा में सुनाई देने लगी। सरदार जस्सा सिंह कसूर नगर
की तरफ कूच कर गए। उनका अनुसरण सभी ने किया। जत्थेदार चढ़त सिंह, हरी सिंह भँगी तथा
अन्य सरदार अपने अपने योद्धा लेकर कसूर नगर की तरफ आगे बढ़ते ही चले गए। दोपहर तक सभी
सिक्ख सैनिक कसूर नगर में प्रवेश कर गए। सन् 1763 में यह रमजान का महीना था। गर्मी
जोरों पर थी। कसूर के फौजी भूमिगत आराम घर में घुसे हुए थे। sसिक्खों के आकस्मिक
आक्रमण के कारण पठानों में भगदड़ मच गई। फिर भी उसमान खान ने लड़ने का साहस किया
परन्तु सब व्यर्थ रहा। वह जल्दी ही मारा गया। हाथों-हाथ सिक्खों को भारी विजय
प्राप्त हुई परन्तु इसके लिए उन्हें कुछ कीमत भी चुकानी पड़ी। इस प्रकार उन्होंने एक
दानव के चँगुल से बेचारे ब्राह्मण की स्त्री को मुक्त करवा दिया। युवक ब्राह्मण ने
जत्थेदारों के प्रति आभार प्रकट किया। उत्तर में दल खालसा के नायक सरदार जस्सा सिंह
जी ने कहा कि ‘धन्यवाद तो आप सतगुरू का करो, जिसने हम जैसे तुच्छ व्यक्तियों को एक
भला काम करने का बल प्रदान किया है’।