2. रामदास (जेठा) जी का विवाह
एक दिन गुरू अमरदास जी की पत्नि ने अपनी बेटी कुमारी भानी के
विवाह का सुझाव रखा और किसी योग्य वर की तलाश पर बल दिया। गुरू जी ने पुछा: आपको
किस प्रकार का वर चाहिए। मन्सा देवी जी ने कहा कि: "जेठा" जैसा कोई युवक होना चाहिए
जो "सेवा" में सदैव तत्पर रहता है। इस पर उत्तर में गुरू जी ने कहा: "जेठा" जैसा तो
"अन्य कोई युवक" हो ही नहीं सकता यदि जेठे जैसा दामाद चाहिए तो उसके लिए एक मात्र
उसे ही स्वीकार करना होगा। इस पर मन्सा देवी जी ने कहा: लेकिन बेटी भानी जी से भी
पुछना होगा। जब बेटी भानी जी से पुछा गया तो वह बोली: कि आप जो उचित समझें, मुझे
स्वीकार है। गुरू जी ने भाई जेठा जी को बुलाकर उनसे कहा: कि हम आपको अपना दामाद
बनाना चाहते है क्या तुम्हे यह रिश्ता स्वीकार है। जेठा जी यह बात सुनकर आवाक रह गये
उनके आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं था। जेठा जी गुरू जी के चरणों में दण्डवत प्रणाम
करने लगे और कहा: हे गुरूदेव ! मैं तो अनाथ गलियों में ठोकरे खाने वाला एक मामूली
आदमी हुँ आप के चरणों की धूल समान, आप मुझे इतना सम्मान क्यों दे रहे हैं। गुरू जी
ने कहा: तेरी "सेवा का मेवा" और आदेश दिया कि जाओ "बारात" लेकर आओ ताकि विवाह
सम्पन्न कर दिया जाए। घर आकर जेठा जी ने अपनी नानी को खुशखबरी दी और बताया कि
गुरूदेव जी ने आदेश दिया है कि लाहौर जाकर बारात बनाकर लाओ। जेठा जी लाहौर से बारात
लेकर आये तो श्री गुरू अमरदास जी ने बारात का भव्य स्वागत करते हुए सन् 1553
तदानुसार संवत् 1610, 22 फाल्गुन को अपनी सुपुत्री कुमारी भानी जी का विवाह उनके
साथ समपन्न कर दिया। जेठा जी अब और भी उत्साह से सेवा करने लगे। अब उन्हें पूर्ण
गुरू के साथ माता पिता का स्नेह भी प्राप्त हो रहा था। जहां जेठा जी गुरमति-गुणों
से परिपूर्ण थे वही श्रीमती भानी जी भी गुरू उपदेशों पर चलने वाली थीं।