12. भाई गुरदास जी
श्री गुरू रामदास जी ने श्री गुरू नानक देव जी के पँथ के प्रचार
हेतु कुछ विद्वानों को दूर प्रदेशों में भेजा। इनमें उनके अपने चचेरे साले, भाई
गुरदास जी भी सम्मिलित थे। आपकी नियुक्ति आगरा क्षेत्र में की गई। आपने गुरमति
प्रचार-प्रसार की सेवा बहुत निष्ठा से की। स्थानीय जनता आपके प्रवचनों से बहुत
प्रभावित हुई क्योंकि आप बृज, फारसी तथा पँजाबी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान रखते थे।
आप जी ने श्री गुरू अमरदास जी की छत्रछाया में प्रारम्भिक शिक्षा पाई थी अतः आप
गुरमति के एक बड़े व्याख्याकार बनकर उभरे। आप हिन्दू ग्रन्थों व शास्त्रों के भी
पण्डित थे क्योंकि आपने अपने पिता दातारचन्द से यह विद्या विरासत में सीखी थी। जब
श्री गुरू रामदस जी ने अपना परलोक गमन का समय निकट जाना तो उन्होंने आपको आगरा से
वापस बुला लिया। गुरू जी को यह अहसास हो गया था कि हमारा बड़ा लड़का पृथीचन्द हमारे
देहावसान के पश्चात बहुत झगड़े करेगा जिनको बहुत ही सूझ-बूझ से सुलझाने के लिए उनके
मामा के रूप में अति प्रभावशाली व्यक्तित्व की आवश्यकता है। अतः भाई गुरदास जी गुरू
जी का सन्देश पाते ही समय पर पहुँच गए।