10. भाई हिंदाल जी
जिला श्री अमृतसर साहिब जी के जड़ियाला नगर का हिंदाल नामक एक
भक्तगण श्री गुरू अमरदास जी के दर्शनों को आया। उसके दिल में आत्मकल्याण की इच्छा
थी। अतः वह लँगर की सेवा में वयस्त रहने लगा। श्री गुरू अमरदास जी जब परम ज्योति
में विलीन हो गए तो वह श्री गुरू रामदास जी की शरण में गुरू के चक्क पहुँच गया वहाँ
भी वह समर्पित तन-मन से लँगर की सेवा में व्यस्त रहने लगा। इस अनन्य सिक्ख की चर्चा
भी गुरूदेव के कान तक पहुँची। गुरूदेव ने एक दिन लँगर का निरीक्षण करने का मन बनाया।
भाई हिंदाल की यात्रियों की सेवा में आत्मिक आनँद का अनुभव करते थे कि उनको गुरू
दरबार में उपस्थित होने का अवसर भी नहीं मिल पाता था। वह सदैव अपनी सुरति गुरू शब्द
में लगाए रहते और संगत को प्रभु रूप जानकर तन-मन से उनकी सेवा करते थे। एक दिन भाई
हिंदाल जी आटा गूँथ रहे थे तो अकस्मात् गुरूदेव लँगर में पधारे। सभी सेवकों ने अपना
अपना कार्य छोड़कर गुरूदेव को नमस्कार किया। उस समय भाई हिंदाल जी के पास समय नहीं
था कि वह आटे से सन्ने हुए हाथ धो सके। वह तुरन्त गुरू चरणों में पहुँचे, पहले
उन्होंने अपने सन्ने हुए हाथा पीठ के पीछे किए और घुटनों के बल बैठकर शीश झुकाकर
प्रणाम किया। उनकी इस अनोखी विधि को देखकर गुरूदेव मुस्करा पड़े और काफी प्रसन्न
होकर उन्होंने अपने इस अनन्य शिष्य को थापी दी। लम्बे समय से सेवा करते हुए भाई
हिंदाल जी का जीवन भी उच्चकोटि का हो गया था। अतः गुरूदेव ने उनको आदेश दिया कि आपकी
सेवा स्वीकार है अब आप अपने निवास स्थान पर गुरूमति का प्रचार-प्रसार करें। गुरू
आज्ञा का पालन करते हुए भाई जी घर लौट गए और वहा सिक्ख सिद्धान्तों का प्रचार करने
लगे। आपने जीवन भर निष्काम मानव की सेवा की परन्तु आपके देहान्त के पश्चात आपकी
सन्तानों ने अपनी पूजा करवाने की भूख के कारण श्री गुरू नानक देव जी की जीवनी लिखते
समय बहुत सी गुरूमति विरोधी विचारधारा पोथियों में लिखवा डाली हैं, जिनसे पँथ को
सावधान रहना चाहिए।