6. सोनीपत पर आक्रमण
इन दिनों सम्राट बहादुरशाह राजपुतों के युद्ध में उलझा हुआ था। दिल्ली में कोई साहसी
उत्तरदायित्व निभाने वाला नहीं था। अतः खजाना लूटे जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं
हुई। बहुत बड़ी धनराशि हाथ लगने से बंदा सिंह ने अपनी सेना का गठन प्रारम्भ कर दिया
और सभी प्रकार की युद्ध सामग्री खरीद ली। सहेरी-खण्डाँ गाँवों का मध्य स्थल उसकी
सैनिक तैयारियों के लिए बहुत उपयुक्त सिद्ध हुआ। दूसरी तरफ जब बंदा सिंह से विदा
लेकर सिंघ अपने घरों में पहुँचे तो उनके परिवारों ने गुरूदेव की कुशलक्षेम पूछी। इस
पर सिंघों ने कह दिया गुरू जी ने अपने एक बंदे को भेजा है जिसके नेतृत्व में हमें
सँगठित होने का आदेश है और वह उनके पुत्रों की हत्या अथवा अन्य हत्याओं का प्रतिशोध
दुष्टों से लेगा। बस फिर क्या था यह सँदेश प्राप्त करते ही गाँव-गाँव से युवकों के
हृदय में गुरू के नाम पर मर मिटने की इच्छा जागृत हो गई। वे इक्ट्ठे होकर काफिलों
के रूप में बंदा सिंह के पास गाँव सहेरी पहुँचने लगे, पूरे पँजाब में यह लहर चल पडी।
कई परिवारों ने अपने घर की भैंसे बेचकर घोड़े खरीद लिए और किसी-किसी ने तो अपने सभी
बेटों को गुरू के नाम पर न्यौछावर होने भेज दिया। पँजाब के मालवा क्षेत्र के सिक्ख
बंदा सिंह के पास पहले पहुँच गए क्योंकि बाँगड देश मालवा क्षेत्र से सटा हुआ था
किन्तु पँजाब के दोआबा तथा मांझा क्षेत्रों के सिक्ख दूरी अधिक होने के कारण रास्ते
में ही थे। जत्थेदार बंदा सिंह की पँचायत ने अनुभव किया कि इस समय उनके पास
पर्याप्त सँख्या में सैन्यबल है। इस विशाल सेना को बिना लक्ष्य बैठाकर रखना घातक हो
सकता है। अतः इन को छोटे-छोटे लक्ष्य दिए जाएँ, जिससे इनका अनुभव बढ़े और सँयुक्त
रूप से कार्य करने की क्षमता अत्पन्न हो सके। अतः उन्होने सोनीपत को विजय करने का
निश्चय किया। उसके पीछे सोनीपत की सैनिक चौकी का कमजोर होना भी था। बंदा सिंह ने
पाँच प्यारे की आज्ञा अनुसार अरदास करके सोनीपत पर आक्रमण कर दिया। अनुमान ठीक निकला
स्थानीय मुग़ल फौजदार अपनी स्थिति कमजोर देखकर बिना युद्ध किए दिल्ली भाग गए। सिक्खों
ने बची हुई युद्ध सामग्री कब्जे में ली तथा स्थानीय जनता की पँचायत बुलाई ली और नगर
का नियन्त्रण उनको सौंपकर लौट गए। सोनीपत की विजय से सभी सिक्खों को साहस बढ़ता चला
गया। पँजाब से सिक्खों के प्रतिदिन नये-नये काफिले बंदा सिंह के पास पहुँच रहे थे।
इस सब समाचारों के मिलने पर सरहिन्द के सूबेदार वजीर खान को भय सताने लगा कि कहीं
यह गुरू का बंदा मुझ पर तो आक्रमण नहीं कर देगा। अतः वह सर्तक हो गया। उसने
मलेरकोटला के नवाब शेर खान को आदेश दिया कि वह पँजाब के मांझा क्षेत्र से सिक्खों
कों बंदा सिंह की सेना के पास न जाने दे, उन्हें सतलुज नदी पर ही रोककर रखा जाना
चाहिए।