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4. झाँसी क्षेत्र के निकट  

झाँसी क्षेत्र के निकट आपने पड़ाव डाला। भोजन व्यवस्था करते समय एक स्थान पर चूल्हा बनाते समय नीचे से गढा हुआ खज़ाना मिल गया। अनुमान लगाया गया कि यह खज़ाना किसी डाकू गिरोह द्वारा धरती मे गाढ़कर छिपाया गया था। खज़ाना मिलने पर बंदा सिंह के लश्कर की आर्थिक दिशा बहुत मजबूत हो गई। आगरा क्षेत्र के निकट : इस प्रकार आगे बढते हुए आगरा क्षेत्र के निकट एक दिन रास्ते में एक वंजारों के काफिले से सामना हो गया। वंजारों का काफिला बंदा सिंह की पलटन को देखकर भयभीत हो गये और इधर-उधर शरण-स्थलों में छिपने लगे। बंदा सिंह इसका कारण जानना चाहते थे अतः उन्होंनें उनमें से कुछ को पकड़ लिया और पूछताछ की। प्रारम्भिक पूछताछ से मालुम हुआ वे लोग बंदा सिंह के सैनिकों को मुग़ल सेना समझ रहे थे क्योंकि मुग़ल सैनिकों का व्यवहार वंजारों के प्रति अच्छा नहीं रहता था। वह इनका शोषण करते और धमकाते रहते थे। जब वंजारों को ज्ञात हुआ जिन्हें वे शाही सैनिक समझ रहे थे। वे तो वास्तव में श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के सिक्ख है, तो वे सब एकत्र होकर जत्थेदार बंदा सिंह की शरण मे उपस्थित हुए और उन्होंने बताया कि वे नानक पँथी हैं किन्तु अपनी पहचान छिपाए रहते हैं अन्यथा सत्ताधरियों के क्रोध का शिकार बन जाते हैं। इस प्रकार जत्थेदार बंदा सिंह को एक शुभ अवसर हाथ लगा, उसने अपनी सँख्या बढ़ाने के विचार से वंजारों के सम्मुख एक प्रस्ताव रखा और उन्हें अपना लक्ष्य बताया कि हमारा एक मात्र उददेश्य है अत्याचारी शासकों से बदला लेना। यदि तुम लोग हमारे साथ सहयोग करो तो यह काम बहुत सरल हो सकता है। बंदा सिंह ने उन्हें बताया हम चाहते हैं कि तुम लोग अपने युवकों को हमारी सेना में भर्ती कराओ और हमें रसद तथा अस्त्र-शस्त्र मुहैया कराते रहें। जिसका हम नकद भुगतान करेंगें। वंजारे प्रसन्न हो उठे, वे इसी प्रकार की संधि चाहते थे। उन दिनों मध्य भारत के विभिन्न क्षेत्र में थे वंजारे, नानक पँथी लोग दूरदराज के क्षेत्रों मे फैलकर आदिवासियों जैसा जीवन व्यतीत कर रहे थे। इनमें अधिकाँश सीकलीगर थे जो शस्त्र निर्माण के कार्य में दक्ष थे और वे अतीत में श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब तथा श्री गुरू गोबिंद सिंह जी को शस्त्रों की खेप भेजते ही रहते थे। इस समय बंदा सिंह ने वंजारा बिरादरी को विश्वास में ले लिया था और युवकों को अपनी सेना में भर्ती करना प्रारम्भ कर दिया। देखते ही देखते बंदा सिंह का सैनिकबल, विशाल रूप धारण करने लगा और वह धीरे-धीरे आगे बढते हुए रोहतक जिले होते हुआ गाँव सहेरी और गाँव खण्डाँ के मध्य में पड़ाव डालकर बैठ गए। उन दिनों इस समस्त क्षेत्र को बाँगर देश कहते थे। अब बंदा सिंह के समक्ष उसका मुख्य लक्ष्य सरहिन्द नगर बहुत निकट था। इस समय उस के सामने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए योजनाबद्ध कार्यक्रम तैयार करना और पँजाब में बसे विभिन्न क्षेत्रों के सिक्खों को गुरूदेव जी का हुक्मनामा भेजना था जिसके मिलने पर गुरूदेव के समर्पित अनुयायी सिर पर कफन बाँधकर उसको सहयोग देने काफिलों के रूप मे एकत्र हो जाएँ।

बंदा सिंह ने अपने साथी सिक्खों से कहा आप अपने-अपने घर जाएँ और सभी निकटवर्ती क्षेत्रों में गुरूदेव का हुक्मनामा सुनाएँ, और बिखरे हुए सिक्खों को एकत्र करने का अभियान चलाएँ। जब तक पँजाब के सिक्ख इस अभियान में सम्मिलित नहीं होते तब तक मुख्य लक्ष्य पर धावा नहीं बोला जा सकता। इस पर सिंघों ने कहा कि हमें घर जाने के लिए कुछ धन चाहिए, हम खाली हाथ नहीं जाना चाहते। तभी सूचना मिली कि लाहौर से दिल्ली शाही खजाना जा रहा है। बस फिर क्या था बंदा सिंह ने तुरन्त शाही खजाना लूटने का आदेश दे दिया, देखते-ही-देखते उसके सैनिकों ने जरनैली सड़क को घेरकर शाही खजाना लूट लिया यह प्रथम शाही सेना से मुठभेड़ थी। शाही खजाना हाथ लगते ही बंदा सिंह ने घर जाने वाले सिक्खों से कहा कि खज़ाना तुम्हारे सामने है जितनी इच्छा हो ले जाओ, इस बात पर सभी प्रसन्न हुए और सन्तुष्ट होकर घरों को चले गए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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