35. विवाह
एक दिन बंदा सिंह ने चम्बा क्षेत्र को देखने का मन बनाया, उन्हें ज्ञात हुआ था कि
प्रकृति ने इस स्थल को अपनी अनुपम छटा से दिव्यमान किया है। किन्तु इस बार वह अपने
साथ अंगरक्षकों का दल ले गँ। सूचना प्राप्त होते ही स्थानीय नरेश उदय सिंह ने अपनी
सीमा पर अपने सँतरियों द्वारा पूछताछ की कि आपका चम्बा क्षेत्र में प्रवेश करने का
क्या उद्देश्य है ? इस पर बंदा सिंह ने कहलवा भेजा वह केवल पर्यटन के विचार से वहाँ
आया है। तब राजा उदय सिंह ने अपने मन्त्री को भेजकर दल खालसे के नायक बंदा सिंह का
भव्य स्वागत किया और उन्हें राजमहल में पधारने को कहा। इस प्रकार विचारों के
अदानप्रदान से बहुत जल्दी राजा उदय सिंह और बंदा सिंघ की घनिष्ट मैत्री बन गई। राजा
उदयसिंह बंदा सिंघ बहादुर जी से बहुत प्रभावित हुआ उसने राजकीय परिवार की एक कन्या
का रिशता बंदा सिंह से करने का आग्रह किया। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और वह
विवाह बन्धन में बँध गए। बंदा सिंघ जी का विवाह बन्धन में पड़ने का अपना ही उद्देश्य
था। वह चाहते थे कि कोई स्थाई सुरक्षित क्षेत्र उनकी पनाहगाह हो। जहाँ वह अभय होकर
विचरण कर सकें। कुछ माह चम्बा क्षेत्र में व्यतीत करने पर बंदा सिंघ जी ने फिर से
दल खालसा को सँगठित करने का निर्णय लेकर पठानकोट-गुरदासपुर क्षेत्र में पसरना शुरु
कर दिया। इस बीच उनकी नव नवेली पत्नी गर्भवती हो चुकी थी। बंदा सिंह जी के पैतृक
सँस्कार इस क्षेत्र के पड़ोस में बसने वाले नगर राजौरी के थे। आप अपने को राजपूत व
डोगरा कहलाते थे और आपकी मात्र भाषा डोगरी (पर्वतीय पँजाबी) थी। इसलिए यह विवाह
बहुत सफल सिद्ध हुआ क्योकि राजकुमारी रतनकौर का भी लगभग इन्हीं सँस्कारों में पालन
पोषण हुआ था।