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33. दल खालसा के विघटन का कारण

दल खालसा का सेना नायक बंदा सिंह बाहदुर बहुत दयालु स्वभाव का व्यक्ति था। युवास्था में उसने हिरनी के शिकार के पश्चात् प्रायश्चित स्वरुप सँन्यास ले लिया था। इस बार सरहिन्द की विजय के पश्चात् हुए रक्तपात ने उसे फिर से सोचने पर विवश कर दिया कि वह रक्तपात में भाग ले या न ले वह अपने मन की स्थिति किस को बता नहीं पा रहा था। वैसे भी वह विचार कर रहा था कि उसका लक्ष्य पूर्ण हुआ जो कि उसके गुरुदेव श्री गुरु गोबिन्द सिंघ जी ने दिया था। वह सरहिन्द को अपनी राजधानी बनाना चाहता था किन्तु उसकी पँचायत सरहिन्द नगर को शापित नगर मानती थी। अतः वह मुखलिसगढ़ (लोहगढ़) रियासत नाहन में आ गया। यह स्थल उसको बहुत भा गया क्योकि वह रमणीक क्षेत्र था। प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर मनोहर छटा वाला यह क्षेत्र उसे एकाँतवास के लिए बहुत उपयुक्त प्रतीत हुआ। वह यहाँ साधना करने के विचार से रहने लगा और यहीं से दल खालसा को आदेश देने लगा। परन्तु उसका लक्ष्य कोई साम्राज्य बनाना नहीं था। उसको जो भी धन-सम्पदा हाथ आई सब अपने सैनिकों में बाँट दी और अपने लिए कुछ भी न रखा जो भी धन लौहगढ़ में सुरक्षित था, वह दल खालसे के अगामी कार्यों के लिए दे दिया। उसने स्वयँ युद्ध में भाग लेना छोड दिया, केवल चिन्तन मनन में ही व्यस्त रहने लगा। यह उसका स्वभाव बन गया था। उसे यह भी ज्ञान था कि अगम्य शक्ति के वे तीर जो उसे गुरुदेव ने प्रसाद रुप में दिए थे, समाप्त हो चुके है। अतः अब वह विपत्तिकाल में गुप्त शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता। क्योकि उसकी अगम्य गुप्त शक्तियाँ शत्रुओं ने प्रत्यक्ष देखी थीं। इसलिए उसे वह एक जादूगर ही मानते थे और मुग़ल सेना बंदा सिंह के नाम से काँपती थी और साहस छोड़कर भाग खड़ी होती थी। दल खालसा ने मुग़लों में फैली हुई इस दहशत का पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए जहाँ भी शत्रुओं पर आक्रमण किए वहीं अफवाह फैला दी कि बंदा सिंह स्वयँ युद्ध में सम्मिलित है, बस फिर क्या था ? शत्रु सेना धैर्य छोड़कर भाग खड़ी होती थी। सरहिन्द विजय के पश्चात जहाँ दल खालसा के हाथ करोड़ों का खजाना आया वहीं उनके सैनिक लम्बी लड़ाई से उबे घर लौटने के चक्कर में थे। जिससे प्राप्त वेतन अथवा पुरस्कार परिवार वालों को दिए जा सकें। अतः जल्दी ही दल खालसा की सँख्या कम हो गई। जिस प्रकार सिक्ख लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जैसे एकत्र हुए थे, उसी प्रकार बिखर गए। परन्तु दल खालसा के नेताओं ने दल के समस्त सदस्यों को आदेश दिया कि वे जहाँ भी हैं वहीं स्वतन्त्रा प्राप्ति के लिए सँघर्ष प्रारम्भ कर दें।

इस प्रकार सिक्खों ने एक ही समय चार विभिन्न क्षेत्रों में स्वतन्त्रता सँग्राम चलाने आरम्भ कर दिए। पहला सँग्राम था यमुना-गँगा के मध्य का क्षेत्र सहारनपुर इत्यादि, दूसरा मालवा जिसमें सरहिन्द भी था, तीसरा सतलुज नदी और दो पानियों के मध्य का क्षेत्र जालन्धर, होशियारपुर इत्यादि और चौथा था लाहौर-अमृतसर गुरदासपुर इत्यादि नगरों का क्षेत्र (मांझा)। सिक्खों को विजयी होने के कारण आत्मविश्वास जागृत हो गया था। इसके विपरीत मुग़लों का मनोबल टूट गया था कि सिक्ख परास्त नहीं किए जा सकते। इस मानसिक परिस्थिति के कारण सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया था। छः माह के भीतर ही सिक्खों ने एकत्र होकर स्थानीय प्रशासन को खदेड़कर सत्ता अपने हाथ में ले ली थी। परन्तु विशाल क्षेत्रों में फैले हुए सिक्खों को एक केन्द्रीय शक्ति बनाने में अभी कुछ और समय की आवश्यकता थी। इससे पहले कि वह अपनी सँख्या बढ़ा पाते, बादशाह बहादुरशाह ने दल खालसा के विरुद्ध अभियान चलाने का मन बनाकर उन पर बहुत बड़ा आक्रमण कर दिया। रणभूमि बनी करनाल के निकट तरोड़ी के जँगली क्षेत्र व अमीनगढ़ के मैदान। यहाँ स्थानीय सिक्ख पलटनों के जरनैल सरदार विनोद सिंह व शाम सिंह ने बहुत बड़ी युक्ति में विशाल मुग़ल सेना को अपनी कम सँख्या के रहते जरनैली सड़क पर शत्रुओं पर जँगलो से घात लगाकर आक्रमण कर दिया। जिसका परिणाम पहले-पहल तो बहुत अच्छा रहा किन्तु सँख्या की दृष्टि से दल खालसा यहाँ आटे में नमक के बराबर थे। अतः धीरे-धीरे सिक्ख पीछे हटने लगे। ठीक इसी प्रकार वे बाकी अपने विजयी क्षेत्रों को भी खाली करते पीछे हटते गए क्योंकि कहीं से भी नई कुमक (मदद) के आने की आशा न थी। इस उथल-पुथल में बहुत से सिक्ख योद्धा काम आए अथवा बिखर गए, जो भटककर घरों को लौट गए। लगभग यही स्थिति सढौरा व लोहगढ़ किले के आसपास हुई। बहुत बड़ी सँख्या में सिक्ख सैनिक अपने दल से भटककर बिखर गए और पर्वतों अथवा दूरदराज की घाटियों में समय व्यतीत करने लगे। कुछ दिनों पश्चात् जब उन्हें बंदा सिंह द्वारा लिखित ‘हुक्म नामे’ कीरतपुर से प्राप्त हुए तो वे तुरन्त वहाँ एकत्रित होने प्रारम्भ हो गए। इनमें वह सभी दल अथवा पलटने थी जो विभिन् क्षेत्रों में तैनात थी जो मुग़लो से बडे सँग्राम के समय पहुँच नहीं पाई थीं। जैसे ही मुग़ल सम्राट को सिक्खों के विशाल एकत्रित सेना का समाचार पहुँचा वह भयभीत हो गया। क्योकि अब उसके पास वह विशाल सैन्यबल नहीं था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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