30. सरहिन्द नगर की पराजय
जब कम सँख्या होने के कारण दल खालसा अमीनगढ़ की लड़ाई जीती हुई हारकर पीछे हटते हुऐ
थानेसर (थानेश्वर) पहुँच गए तो बायजीद खान जो कि सिक्खों के डर के मारे लम्बे समय
से पानीपत में रूका हुआ था अपने जवानों को लेकर जालन्धर की ओर चल पड़ा। जैसे ही यह
समाचार शम्सखान को मिला कि उसका चाचा बायजीद खान विजय का सँदेश लेकर लौटा है। उसका
साहस बढ़ गया। उसने दोआबा क्षेत्र के नगर जालन्धर से काफी वैतनिक सैनिक एकत्रित कर
लिए और उमर खान व चाचा बायजाद खान की सेना भी अपनी सेना मे सम्मिलित करके सरहिन्द
पर आक्रमण कर दिया। उस समय सरहिन्द का खालसा दल का फौजदार बाज सिंह कुमक लेकर युद्ध
करने अमीनगढ़ गया हुआ था। उसके स्थान पर उसके भाईयों सुक्खा सिंह व शाम सिंह ने बहुत
साहस से शत्रु का सामना याकूब खान के बाग में किया। इस मैदान में पहले-पहल सिक्खों
का पलड़ा भारी रहा परन्तु अन्तिम मुठभेड़ में गोला बारूद की कमी और सैनिकों की कम
सँख्या के कारण सिक्खों को मैदान छोड़कर किले की शरण लेनी पड़ी। वास्तव में घमासान
युद्ध में सुक्खा सिंघ मारा गया। जिस कारण सिक्खों के पैर उखड़ गए। जबकि युद्ध समान
स्तर पर चल रहा था। सरहिन्द के किले में रण साम्रगी का पहले से ही अभाव था। अधिकाँश
गोला बारूद अमीनगढ़ भेजा जा चुका था। अब अधिकाँश सिक्ख सैनिक काम आ चुके थे। ऐसे में
कुछ गिनती के सैनिकों के साथ लम्बे समय का युद्ध नहीं लड़ा जा सकता था। अतः सिक्खों
ने समय रहते सरहिन्द का किला त्याग दिया जो तुरन्त शत्रु सेना के हाथ आ गया। यहाँ
से सिक्ख सेना पीछे हटती हुई नयी पनाहगाह की खोज में खरड़ पहुँची। परन्तु उनका पीछा
मुहम्मद अमीन खान की पलटन कर रही थी। यहाँ से सिक्ख सेना बुडेल गाँव के किले में
पहुँची। यहाँ पर मुग़ल सेना और सिक्ख सेना में भयँकर युद्ध हुआ। अकस्मात रोपड़ से पीछे
हटती हुई, एक सिक्ख सेना की टुकड़ी उस समय वहाँ पहुंच गई। बस फिर क्या था सिक्खों का
पलड़ा भारी हो गया। उन्होंने तुरन्त अफवाह फैला दी कि बंदा सिंघ स्वयँ कुमक लेकर
हमारी सहायता को आ पहुँचा है। इस पर भयँकर घमासान का युद्ध हुआ। यहाँ मुग़ल सेना को
भारी क्षति उठानी पडी। उनके लगभग एक हजार जवान काम आए और बाकी भागकर लोट गए।