3. बंदा सिंह का पँजाब की ओर प्रस्थान
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से विदा होकर बंदा सिंह पँजाब की ओर चल पड़ा। रास्ते में
जत्थे के सिंघों ने उसे गुरुदेव जी की तथा अन्य पूर्व गुरुजनों के वृताँत सुनाए
जिसमें श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत भी थी। बन्दा सिंह इन वृताँतों को सुनकर
प्रतिद्वन्दी पक्ष से प्रतिशोध लेने के लिए व्याकुल हो उठा। वह भावुकता मे कभी-2
आवेश में भी आ जाता। इस प्रकार उसका क्रोध वीरता मे बदल गया। वह जल्दी अपनी मँजिल
पर पहुँचना चाहता था और वह प्रतीक्षा करने लगा कि उसके पास कब पर्याप्त सँख्या में
सेना हो जिससे युद्ध प्रारम्भ किया जा सके। किन्तु अभी उसके पास धरोहर के रूप में
एक निशान साहिब एक नगाड़ा, एक छोटी सैनिक टुकडी, एक पँजाब के सिंघों के नाम
हुक्मनामा और पाँच तीर ही थे। बंदा सिंह को रास्ते में खर्च के लिए धन की आवश्यकता
अनुभव हुई। उसे गुरुदेव का वचन स्मरण हो आया। जब कभी कठनाई का अनुभव हो तो पाँच प्यारे सामूहिक रूप मे प्रार्थना करना, कार्य सिद्ध होगा। बस, बंदा सिंह ने अपनी
बात साथी सिंघों के बताई, उन्होंने उसी क्षण मिलकर गुरू चरणों में प्रार्थना की,
आपने वचन दिया था हाथ खालसे का और खजाना गुरू का रहेगा। अब वह समय आ गया है हमें धन
की अति आवश्यकता है। इधर सिंघ अरदास समाप्त कर के हटे ही थे कि उधर एक व्यक्ति ने
तुरन्त सँदेश दिया। एक वंजारा आप की खोज कर रहा है उसे मालुम हुआ है आप गुरू के बंदे
हैं। वह अपना दशमाँश यानि आय का दसवाँ भाग गुरू घर के कार्य कि लिए जमा करवाना चाहता
है। यह सुनते ही सभी सिक्खों का विश्वास गुरू वचनों पर और दृढ हो गया। उस वंजारे
सिक्ख ने बंदा सिंह को 500 रू दिए और कहा कि यह राशि गुरू साहिब जी की अमानत है,
उन्हें पहुँचा दें। इस प्रकार बंदा सिंह पँजाब की ओर बढ़ता चला गया।