SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

27. कोटला बेग़म और भीलोवाल का युद्ध

उन्हीं दिनों दूसरी बार फिर लाहौर से कुछ कोस दूर चम्यारी नगर के निकट कोटला बेग़म में बहुत बड़ी सँख्या में सिक्खों का एक दल एकत्र हो गया। इसका पता चलने पर मौलानों ने पुनः जेहाद का ढोल बजवा दिया। देखते-ही-देखते चींटियों तथा टिड्डी दल की भाँति एक बहुत बड़ा लश्कर तैयार होकर सिक्खों के विरूद्ध कोटला बेगम की ओर चल पड़ा और मार्ग में जो भी गाँव पडें उन सभी को बदले की आग में जलाते हुए जेहादियों ने लूटमार करके नष्ट कर दिए। इस प्रकार गरीब जनता पर खूब अत्याचार किए। इन अत्याचारों को देखकर जेहादी लश्कर के नेता भी त्राहि-त्राहि कर उठे। इसलिए उन्होनें भीलेवाल गाँव के पास दो-तीन जेहादियों, गाज़ियों को तलवार से काटकर मृत्यृदण्ड दिया। तब भी सामान्य जेहादियों पर इसका अधिक प्रभाव न पड़ा। वे फिर भी लूटमार करते रहे और उदण्डता मचाते रहे। जब तक कि वे कोटला बेगम के किले की दीवारों के पास सिक्खों के सम्मुख न पहुँच गए। इस बार जेहादियों को वहाँ पहुँचा देखकर सिक्ख उनका स्वागत करने के लिए बन्दूकें लेकर बाहर निकल आए और गोलियों और तीरों की वर्षा से बहुतों के पाँव उखाड़ दिए। अनेक को तलवार के घाट उतार दिया। इस प्रकार भीषण युद्ध में सिक्खों ने नंगे खड़ग (नंगी तलवार) की चमक से अधिकाँश जेहादियों को चकरा दिया और रणक्षेत्र से भागने पर विवश कर दिया। बहुत घमासान युद्ध हुआ और दोनों पक्षों के शूरवीर रणभूमि में काम आए। चारों ओर शव दिखाई देने लगे। बहुत बडी सँख्या में जानी नुक्सान हुआ। युद्ध में एक ऐसा समय भी आया जब परिणाम डाँवाडोल था। परन्तु सिक्ख सामान्यतः पराजय की लड़ाई में भी विख्यात हैं। इस कठिन समय में उन्होंने बहुत वीरता से आगे बढ़कर एक ऐसा जोरदार आक्रमण किया कि जेहादियों की पँक्तियाँ टूट गईं और वे डगमगा कर पीछे हटने लगे।

अफगान घुड़सवार भी सिक्खों से लोहा न ले सकें। भगदड़ में अपने घोड़ों की लगाम पीछे मोड़ ली और रणक्षेत्र से भागने में ही भलाई समझी। जैसे ही घुड़सवार पीछे हटे फिर जेहादियों का धैर्य टूट गया। वे सम्भल न सके और देखते-देखते टूटे हुए साहस के कारण बिखर गए। उनके नेता उनको अली के नाम की कसमें देते और ललकारते रहे। असँख्य गाजी मैदान में मारे गए और अनेकों ने कायरों की तरह भागते हुए प्राण बचाए। जेहादी निराश और उदास लाहौर की और लौट रहे थे, परन्तु इनका दुर्भाग्य अभी भी समाप्त न हुआ। मार्ग में रात काटने के लिए वे भीलोवाल गाँव में टिक गए। सरकारी सेना के सिपाही तो किले में चले गए तथा शेष अवैतनिक सिपाही, गाजी सिक्खों की ओर से निश्चिन्त होकर खुले मैदान में सो गए। दूसरी ओर सिक्ख अँधकार का लाभ उठाकर इनके पीछे धीरे-धीरे चल निकले थे ताकि इनके लाहौर पहुँचने से पूर्व ही एकाध चोट और कर सकें। सिक्ख भीलोवाल के निकट पहुँचकर गाँव से बाहर ही झाड़ियों में छिप गए, जैसे ही प्रातः काल हुआ, सूर्य उदय होने से पूर्व झाडियों में से निकलकर अकस्मात् जेहादियों पर टूट पडे। जेहादियों को सभलने का सिक्खो ने अवसर ही नहीं दिया। इससे पहले की वे लडाई के लिए तैयार होते उससे पहले ही बहुत जेहादी मारे गए, जो बचे, जिसे जिधर का मार्ग दिखाई दिया, वह उधर ही भाग निकला। सिक्खों के पास शत्रुओं से प्रतिकार के लिए यह एक अद्वितीय अवसर था। जिसका उन्होंने अधिकाधिक लाभ उठाया और जेहादियों, गाजियों की सदा के लिए कमर तोड़ दी। भीलोवाल के इस युद्ध में जेहादियों और सिक्खों की हानि का कोई ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता। परन्तु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जेहादियों के अधिकाँश जवान मारे गए और उनका माल व घोडे सिक्खों के हाथ आए। नेताओं में मुर्तजा खान और टोडरमल का पौत्र यहीं मारे गए। इस विजय से सारे प्रदेश में सिक्खों का बोलबाला हो गया। इस प्रकार केवल एक मात्र लाहौर नगर को छोड़कर लगभग सारे मांझा और रियाड़की क्षेत्र पर सिक्खों के घोड़े घूमने लगे। मुल्लाओं ने कई बार पुनः ईमान के नाम पर मुसलमानों को उकसाने के प्रयत्न किए और सिक्खों से प्रतिशोध लेने के लिए ललकारा, परन्तु उनकी बात किसी ने न सुनी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.