26. किला भगवंतराय
एक बार लाहौर नगर के निकट का सिक्खों का दल रावी नदी के तट पर घुमता हुआ भरत नामक
गाँव के पास आ निकला। परगना नेरटा-भरली के कानूनगाँ महता भगवंतराय ने यहाँ दरिया के
किनारे अपनी हवेली बनवा रखी थी। इतिहासकारों ने इसका नाम किला भगवंतराय लिखा है।
वर्षा होने के कारण केवल समय काटने के लिए सिक्ख हवेली में जा घुसे। सिक्खों के यहाँ
होने का समाचार लाहौर की सेना के एक हजार सवारों के एक दल को मिला। शायद वे भी
सिक्खों की खोज में भटकते हुए उधर ही आ निकले होंगे। उन्होंने तुरन्त हवेली को घेर
लिया और यदि कोई अकेला सिक्ख उन्हें बाहर मिल गया तो उन्होंने उसे वहीं समाप्त कर
दिया। हवेली में सिक्खों के घिर जाने का समाचार सुनकर हजारों अन्य जेहादी भी यहाँ
आकर एकत्रित हो गए और घेरा इतना पक्का कर दिया कि सिक्खों के लिए बाहर निकल सकना
कठिन हो गया। जेहादियों ने मुण्डेरे तथा दीवार बनाकर ऊपर तोप आदि चढ़ा दी और हवेली
पर आग बरसाने लगें। इस प्रकार सिक्ख विपत्ति में फँस गए परन्तु उन्होंने डटकर सामना
करने की ठान रखी थी। उन्होंने बुर्जियों, मुंडेरों और दीवारों के ऊपर से शत्रु पर
वार करने शुरू किए और जब कभी अनाड़ी जेहादियों ने दीवार फाँदने के लिए हाथ डाले तो
सिक्खों ने तलवारों के साथ उन्हें भूमि पर सदा के लिए सुला दिया। इस प्रकार दोनों
ओर पर्याप्त हानि हुई। परन्तु किसी ओर से भी ढील पड़ती दिखाई न देती थी।
जेहादी-गाजियों के लिए दीवार पार करके भीतर जाना कठिन था। जिससे वे सिक्खों को पकड़
सकें। इसी प्रकार सिक्खों के लिए घेरा तोड़कर बाहर निकलना और जेहादियों को भगा देना
कठिन था। घेराव लम्बा चलनें से सिक्खों की खाद्य सामग्री समाप्त होने लगी। अतः
उन्होंने विचार किया कि उनका हवेली से निकल जाना ही उचित रहेगा। एक रात वर्षा और
अँधेरे का लाभ उठाते हुए सिक्ख हवेली के बाहर डटे हुए जेहादियों को चीरते फाडते
क्षण भर में निकल भागे। शिकार हाथ से निकल जाने से जेहादी निराश होकर हाथ मलते रह
गए। परन्तु अपनी असफलता को छिपाने के लिए वे वीर विजेताओं की भाँति खुशियाँ मनाते
हुए लाहौर लौट गए। परन्तु वे भीतर-ही-भीतर नाकामी की खीझ निकालने के लिए नगर के
हिन्दुओं पर अत्याचार करने लगे और अपने शासकों का अपमान करके उनको ही धमकाने लगे।
मुहम्मद कासिम अपनी पुस्तक ‘इबरतनामे’ मे लिखता है कि जेहादियों की जमात में से कुछ
एक ओछे तथा मूर्ख लोगों ने जिनमें जन्म-जन्माँतरों की नीचता, विद्या के बड़प्पन से
भी दूर नहीं हुई थी और जो झूठे मज़हबी अभिमान से पागल हुए पड़े थे, ने शहर के
हिन्दुओं के साथ बहुत कमीनी तथा नीच हरकतें कीं और सरकारी हाकिमों का भी अपमान
करवाया।