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24. सिक्खों की पँचायत का प्रस्ताव

सिक्खों का इस समय का मनोबल और आवेश एक अकस्मात फूटे ज्वालामुखी पर्वत की भाँति था, जिसका पिघला हुआ लावा इतनी तेजी से बहा कि सब कुछ बहा कर ले गया। उन्होंने स्थानीय अधिकारियों को बर्खास्त करके प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया। अपनी तहसीलें तथा थाने स्थापित कर लिए। पहले-पहल उन्होंने लाहौर तथा कसूर क्षेत्र के परगनों को छेड़ना उचित नहीं समझा। लाहौर तो प्रान्त की राजधानी और सरकारी शक्ति का केन्द्र था और कसूर खेशगी पठानों का गढ़ था। आरम्भ में इन पर आक्रमण करना खतरे से खाली न था। इसलिए सिक्ख सर्वप्रथम रियाड़की की ओर बढ़े। बटाला और कलानौर नगरों पर धावा बोलकर सत्ता पर अधिकार कर लिया। ये नगर उन दिनों बहुत समृद्ध माने जाते थे। इन नगरों पर विजय प्राप्ति से सिक्खों को पर्याप्त धन उपलब्ध हुआ। सिक्खों के इस उत्थान से स्थानीय मुल्ला, मौलाने, काज़ी अथवा सरकारी अधिकारी दमनचक्र की लपेट में आ गए, जिन्होंने अधिकाँश जनता को बहुत दुखी किया हुआ था। इन लोगों ने भागकर लाहौर में शरण ली।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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