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22. यमुना-गँगा के मध्य के क्षेत्रों पर विजय

सरहिन्द व उसके परगनों की विजय ने बंदा सिंघ बहादुर जी को मुग़ल प्रशासन से तँग आए हुए लोगों में एक मुक्ति दिलवाने वाले महापुरूष के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि पँजाब से दूर-दूर क्षेत्रों के लोग उनके झण्डे तले एकत्रित होने के लिए उनके पास आ पहुँचे। सरदार कपूर सिंघ प्रचारक ने समाचार भेजा कि उत्तरप्रदेश का फौजदार, गाँव ऊनारसा में नए सजे सिंघों पर अत्याचार कर रहा है। बस फिर क्या था यह सुनते ही जत्थेदार बंदा सिंह ने अपने सैन्य बल को यू पी की ओर भेज दिया। सिक्खों ने सहारनपुर के फौजदार वली खान कनौजी सैयद को एक पत्र लिखा कि वह खालसे की अधीनता स्वीकार कर ले तो उसे कुछ न कहा जाएगा। परन्तु वह सिक्खों के यमुना पार आने का समाचार सुनकर ऐसा भयभीत हुआ कि वह वहाँ से अपना धन माल समेटकर सपरिवार उसी रात दिल्ली भाग गया। इस प्रकार एक छोटी सी झड़प के पश्चात् सहारनपुर सिक्खों के हाथ आ गया। सिक्खों का सहारनपुर में जाने का मुख्य लक्ष्य इस्लाम के नाम पर अन्य मतावलम्बियों पर जो अत्याचार हो रहे थे, उनकी रोकथाम करना था। अतः स्थानीय हिन्दू जनता ने खालसे को अपने बहुत से कष्ट बताए। बिहत क्षेत्र के हिन्दुओ ने बताया कि वहाँ के स्थानीय पीरजादे खुले बाज़ारों में गो वध करके हिन्दू जनता का परिहास करते हैं। इस क्षेत्र के दुष्टों को खालसे ने उचित दण्ड दिए और उनकी तौबा करवा दी। यमुना पार के अधिकाँश किसान हिन्दू गुर्जर थे स्थानीय फौजदार इनका शोषण करते रहते थे। इन लोगों ने घोषणा की कि हम नानकपँथी है। हमें दल खालसा अपनी शरण में ले ले। इस प्रकार बहुत से गुर्जर दल खालसा में सम्मिलित कर लिए गए। दल खालसा ने सभी आसपास के क्षेत्रों में अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भेजीं और प्रत्येक प्रकार के अपराधियों को दण्डित किया। इसी अभियान में बुडियाँ क्षेत्र सिक्खों के कब्जे में आ गया।

खालसा का अगला कदम जलालाबाद के बागी फौजदार को ठीक करना था। अतः उससे पहले रास्ते में पड़ते नानौता की जब बारी आई तो स्थानीय गुर्जरों ने दल खालसे का साथ दिया। इस नगर में स्थानीय फौजदार से भयँकर युद्ध हुआ इस प्रकार इस नगर को भारी क्षति उठानी पडी। जिससे उसका नाम फूटा शहर हो गया। जलालाबाद के फौजदार ने सिक्खों के विरोध में भारी तैयारी कर रखी थी। अतः यहाँ सिक्खों को कड़ा सामना करना पड़ा। इसी प्रकार सिक्खों ने अँबहेता क्षेत्र पर भी अधिकार कर लिया। परन्तु आसपास के मुस्लमानों ने जिहाद का नारा लगाकर जनसाधारण को सिक्खों के विरूद्ध इक्ट्ठा कर लिया। यहाँ पर जलाल खान के पौत्र गुलाम मुहम्मद से भयँकर मुठभेड़ हुई। जेहादियों की सँख्या बहुत अधिक होने के कारण सिक्खों को यहाँ से पीछे हटना पड़ा। दल खालसा ने जलालाबाद के फौजदार जलाला खान को पत्र लिखा कि वह अनारसा में कैद किए गए सिक्खों को छोड दे और खालसे के साथ संधि कर लें, परन्तु उसने खालसे के साथ संधि न की। इस पर दल खालसा ने जलालाबाद किले को घेरे में ले लिया परन्तु अन्दर पर्याप्त मात्रा में युद्ध सामग्री एकत्रित की हुई थी। इसलिए घेराबन्दी लम्बे समय तक खींचती चली गई। युद्ध का अन्त होता न देखकर दल खालसा ने घेरा उठा लिया और जल्दी वापस करनाल क्षेत्र में लौट आए क्योंकि बहादुरशाह स्वयँ पँजाब की बगावत को कुचलने के लिए समस्त शाही लश्कर लेकर आ रहा था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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