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17. मलेरकोटला पर आक्रमण

शत्रु पर विजय प्राप्ति की दृष्टि से खालसा दल के नायक बंदा सिंह बहादुर ने अगला कदम मलेरकोटला की ओर बढाया। यहाँ के नवाबों ने श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी पर शाही सेना की ओर से बढ़-चढ़कर आक्रमण किए थे। भले ही गुरूदेव के सपुत्रों की हत्या करवाने में उन का कोई हाथ नहीं था। इस समय उस परिवार के सभी पुरूष सदस्य गुरूदेव के हाथों अथवा छप्पड़चीरी के रणक्षेत्र मे मारे जा चुके थे। जब दल खालसा मलेरकोटला पहुँचा तो वहाँ की स्थानीय जनता रक्तपात होने के भय से काँप उठी, उन्होंने तुरन्त अपना एक प्रतिनिधिमण्डल बहुत बड़ी धनराशि नज़राने के रूप में देकर दल खालसा के नायक बंदा सिंह के पास भेजा। बंदा सिंह इस नगर को किसी प्रकार की क्षती पहुँचाने के पक्ष में नहीं था क्योकि उसे ज्ञात हो गया था कि यहाँ के नवाब शेर मुहम्मद खान ने गुरूदेव के दोनों छोटे सुकुमारों की हत्या का विरोध किया था। साहिबजादों के प्रति दिखाई सहानुभूति के कारण किसी प्रकार के प्रतिशोध का प्रश्न ही नहीं उठता था। अतः वह प्रतिनिधिमण्डल से बहुत सद्भावना भरे वातावरण में मिले और नज़ारने स्वीकार कर लिए। इस प्रतिनिधिमण्डल में एक स्थानीय साहुकार किशनदास ने बंदा सिंघ जी को पहचान लिया। लगभग दस वर्ष पूर्व एक बैरागी साधु के रूप में अपने गुरू रामदास के साथ माधोदास के नाम से उनके यहाँ जो व्यक्ति ठहरा था, वह यही बंदा सिंह बहादुर है। इस रहस्य के प्रकट होते ही भय-प्रसन्नता में प्रवृत हो गया और सभी आपस में घुलमिल गए। तभी बंदा सिंह जी ने स्थानीय प्रतिनिधिमण्डल को वचन दिया यदि यहाँ के शासक हमारी अधीनता स्वीकार कर लें तो यहाँ किसी का बाल भी बाँका नहीं होने दिया जाएगा। तभी उन को बताया गया कि दल खालसा के आने की सूचना पाते ही वहाँ का फौजदार भाग गया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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