15. दल खालसा का योजनाबद्ध कार्यक्रम
दल खालसा के जत्थेदार बंदा सिंह बहादुर को उसके सहायक परामर्श देने लगे कि हमें और
देरी नहीं करनी चाहिए जल्दी ही सरहिन्द पर आक्रमण कर देना चाहिए। इस पर बंदा सिंह
ने विचार दिया हम धीरे-धीरे आगे बढते है और मांझा क्षेत्र के सिंघों के पहुँचने तक
स्थानीय गुरू के सिक्खों को प्रेरित करके शस्त्र उठवाने का प्रयास करते है। जिससे
हमारी सँख्या शत्रु के मुकाबले की हो जाए। बंदा सिंह का विचार उत्तम था कि यह
क्षेत्र गुरू घर के श्रद्धालुओं का था। जैसे ही दल खालसा ने सेना भर्ती अभियान चलाया
आसपास के लोग गुरू साहिब जी के हुक्मनामों के कारण और बंदा सिंघ के चुम्बकीय आकर्षण
के कारण, गुरूदेव के बच्चों का बदला लेने के विचार से दल खालसा के नायक बंदा सिंघ
जी के नेतृत्व मे इकट्ठे हो गए। कुछ ही दिनों में बंदा सिंघ के जवानों की सँख्या
चालिस हजार से सत्तर हजार हो गई। वास्तव में लोग बंदा सिंह को गुरूदेव का प्रतिनिधि
समझते हुए अपने आप को समर्पित करने लगे। जैसे ही बंदा सिंह ने अनुभव किया कि अब
हमारे पास प्रयाप्त मात्रा में सभी प्रकार के साधन उपलब्ध है तो वह अपना सैन्यबल
लेकर सरहिन्द की ओर बढ़ने लगा। यहीं उसे सुच्चानँद का भतीजा एक हजार सिपाहियों के
साथ मिला और उसने दल खालसा से शरण माँगी। इस पर दल खालसा की पँचायत ने बहुत गम्भीरता
से विचार किया। पँचायत का मत था कि वह शत्रु पक्ष का व्यक्ति है केवल छलकपट की
राजनीति के कारण हमारे पास पहुँचा है इसलिए इसे कदाचित शरण नहीं देनी चाहिए। एक
विचार यह भी था कि इसे वापिस लोटाने से शत्रु की शक्ति बढ़ेगी। यदि इसे निष्क्रिय
करके अपने पास रखा जाए तो अच्छा है। अतः इसे सबसे पिछली पँक्ति में रखा जाना चाहिए
ताकि किसी प्रकार कि क्षति न पहुँचा सके। दल खालसा को आशा थी कि बनुड़ क्षेत्र में
पहुँचने पर वजीर खान की सेना से आमना-सामना हो जाएगा परन्तु वाजीर खान की सेना और
उसके सहयोगी शेर मुहम्मद खान रोपड़ के पास कीर्तपुर से आये मांझा क्षेत्र के सिंघों
से जुझ रहा था। उसका ध्येय था कि यहाँ से सिक्ख लोग दल खालसा से न मिल सके। परन्तु
वह इस लक्ष्य को प्राप्त न कर सका। वहाँ पर एक भाई और दो भतीजे मरवाकर घायल अवस्था
में मलेरकोटला लौट आया। दल खालसा की शक्ति का सामना बनुड़ का फौजदार न कर सका और
जल्दी ही परास्त हो गया। इस प्रकार बनूड़ क्षेत्र दल खालसा के कब्जे मे आ गया। यहाँ
से बहुत बड़ी सँख्या में दल को अस्त्र-शस्त्र प्राप्त हुए। अब दल खालसा ने निर्णय
लिया, पहले मांझा क्षेत्र से आ रहे सिंघों को मिल लिया जाए वे रोपड़ की ओर प्रस्थान
कर गए। दोनों दलों का खरड़ ग्राम के निकट छप्पड़चीरी नामक गाँव मे मिलन हुआ। दोनों ओर
से खुशी में जयकारे बुलँद किए गए– ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’।