13. पँजाब के माझा क्षेत्र के सिंघो
से शेर खान का युद्ध
अब हम उन सिंघो का वर्णन करते है जो कीरतपुर में एकत्र हो रहे थे। इस समाचार ने कि
सिंह सरहिन्द की ओर बढ़ने का कार्यक्रम बना रहें है, वजीर खान की नींद हराम कर दी।
उसने सिंघो के दोनों दलों को मिलने से रोकने के लिए समस्त शक्ति लगा दी। मलेरकोटले
के नवाब शेर मुहम्मद खान को कीरतपुर वाले सिक्खों को आगे बढने से रोकने के लिए भेजा।
शेर मुहम्मद के पास अपनी सैनिक टुकडियाँ भी थी। नवाब के साथ उसका भाई खिजर खान तथा
दो भतीजे खान वली व मुहम्मद बख्श भी थे।
उस समय दूसरी ओर सिक्खों की सँख्या इनकी तुलना मे बहुत कम थी। उनके पास कोई अच्छे
शस्त्र-अस्त्र भी न थे। रोपड़ के पास दोनों सेनाओं का सामना हुआ। सिंघ बहुत बहादुरी
से लड़े परन्तु सँध्या समय ऐसा अनुभव हो रहा था कि जैसे शेर मुहम्मद का पक्ष भारी
है। किन्तु रात्रि में सिंघो का एक दल मांझा क्षेत्र से आ पहुँचा बस फिर क्या था,
दूसरे दिन सूर्य उदय होते ही सिंघों ने खिजर खान पर आक्रमण कर दिया। सिंघ आगे ही
बढते गए। दोनों सेनाएँ इतनी समीप हो गईं कि हाथों-हाथ युद्ध आरम्भ हो गया।
इस समय सिंघों ने खूब तलवार चलाई। खिजर खान ने सिखों को हथियार फेंक देने के लिए
ललकारा, तभी उसकी छाती में एक गोली लगी, जिसने उसको सदैव के लिए मौत की गोद मे सुला
दिया। पठान, खिजर खान को गिरते हुए देखकर भाग उठे। शेर मुहम्मद खान स्वयँ आगे बढ़ा।
उसके भतीजे भी साथ थे, जो अपने पिता के शव को उठाना चाहते थे, परन्तु सिंघों ने उन
दोनों को भी जहन्नुम पहुँचा दिया। शेर मुहम्मद खान भी घायल हो गया। मुगल सेनाएँ सिर
पर पैर रखकर भाग उठीं। इस प्रकार मैदान सिंघों के हाथ आया।