20. सम्राट अकबर गुरू दरबार में
अकबर भारत में सभी को खुश रखना चाहता था, ये उसकी सियासी चाल
थी। इसलिए वह गुरू अमरदास जी के दरबार में आया था। अकबर गुरू जी के दर्शनों के लिए
लालयित हो उठा। उसने गुरू जी को सन्देश भेजा कि वो आपके दर्शन करना चाहता है और श्री
गोइँदवाल साहिब आ रहा है। गोइँदवाल में अकबर का भव्य स्वागत किया गया। उसने संगत से
साथ बैठकर लंगर खाया और लंगर देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उसने अनुभव किया कि, मैं दीने
इल्लाही नाम से जिस समाज की स्थापना करना करना चाहता था, उसी समाज की गुरू जी ने
पहले से ही सृजना कर रखी है। मेरी तो कोरी कल्पना ही थी किन्तु गुरू अमरदास जी ने
उसे साकार रूप देकर व्यवहारिक बना दिया है। अकबर ने गुरू जी से निवेदन किया कि वे
आपके इस प्रचार में योगदान देना चाहता है और लंगर का सभी व्यय सहन करेगा। किन्तु
गुरू जी ने यह कहकर मना कर दिया और कहा कि लंगर किसी व्यक्ति विशेष के कोष से नहीं
चला करते यह तो भक्तों अथवा संगत के अपने योगदान से ही फलीभूत होते हैं। अकबर ने कहा
कि कुछ न कुछ तो लेना ही होगा और जिद करने लगा और परगना झुबाल की जागीर का पट्टा
गुरू जी को भेंट किया। लेकिन गुरू जी उसका क्या करते, उन्हे किसी जमीन का लालच नहीं
था। परन्तु अकबर भी बड़ा नितिवान था। एक ढँग निकाल ही लिया कि गुरू जी की बेटी बीबी
भानी के नाम जागीर लिखकर कहा, गुरू जी, जैसे आपकी बेटी, वैसी हमारी बेटी, मैंने तो
अपनी बेटी को जागीर दी है। गुरू अमरदास जी, अकबर की इस युक्ति को देखकर मुस्करा कर
मौन हो गये। अतः उन्होंने विचार किया कि क्यों न इस जमीन के माध्यम से समाज में
पीड़ित वर्ग के उत्थान के लिए कार्य किए जाए। उन्होंने रामदास (जेठा जी) से परामर्श
किया तो उन्होंने कहा कि यह जमीन बाबा बुड्डा जी की देखभाल में दिया जाए, क्योंकि
वह खेती–बाड़ी के काम में भी कुशल हैं। गुरू जी यह प्रस्ताव भा गया, उन्होंने बाबा
बुड्डा जी को बुलाकर आग्रह किया, जिसे बाबा बुड्डा जी ने गुरू जी आज्ञा मानकर
तुरन्त स्वीकार कर लिया, उस समय बाबा बुड्डा जी की आयु लगभग 50 वर्ष की थी। बाबा
बुड्डा जी गुरू नानक देव जी के समय से गुरू घर की सेवा में समर्पित थे। उनका लक्ष्य
भी यही था कि वे किसी प्रकार इसके माध्यम से उपकार के कार्य करें। उन्होंने झुबाल
पहुँचकर समस्त भूमि को क्रमवार जुतवाया और उस पर ऋतु अनुसार उचित फसलें उगवाईं। जो
भी अनाज उत्पन्न होता, उसे लंगर के लिए भेज देते। अतिरिक्त अनाज गरीब लोगों की
आवश्यकता को देखते हुए बाँट देते। यह क्रम कई वर्ष चलता रहा, जिससे लंगर की प्रथा
को बढ़ावा मिला। झुबाल की भूमि और बाबा बुड्डा जी के निवास स्थान, बीड़ बाबा बुड्डा
जी के नाम से जाना जाता है।