SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

8. पीपा जी का धन लुटाना

सुखे आवासों को हरे करते हुए श्रीधर भक्त के घर से प्रसाद खाकर उसे अनुग्रहित करते हुए भक्त पीपा जी एक छोटी रियासत की राजधानी की ओर चले गए। शहर के बहिवर्ती भाग में एक ठाकुरद्वारा था उस ठाकुर द्वारे में डेरा डालकर बैठ गए। उस डेरे के आधे मील की दूरी पर एक सुन्दर सा तालाब था। उस तालाब में पीपा जी स्नान करने के लिए गए। सभी स्नान करके वापिस आ रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक बेरी के निकट ताँबे की गागर पड़ी है। उसमें से सोने की मोहरें चमक रही थीं। उस गागर के पास से जब भक्त जी निकलने लगे तो उसे गागर में से आवाज आई, क्या कोई बँधन काटेगा ? मुझे यहाँ से कोई बाहर निकालेगा ? जब भक्त जी ने निकट जाकर देखा तो गागर में मोहरें थीं। पीपा जी ने मोहरों की तरफ देखकर कहा: तू माया ! संतों की दुश्मन ! तुम यहीं बँधी रहो तो अच्छा है। यह कहकर भक्त जी आगे चले गए और सीता के पास जाकर सारी वार्त्ता सुनाई। सीता जी ने सुनकर कहा: आप वहाँ स्नान करने मत जाया करो। सँयोग से उसी ठाकुरद्वारें में चोरों का ठिकाना था। उन्होंने भक्त पीपा जी की सारे वार्त्तालाप को सुन लिया था। उन्होंने सोचा कि भक्त तो मोहरों का उठा न सका क्यों न हम उठा लें। अंधेरा होते ही चोर वृक्ष के पास पहुँच गए। गागर की ओर निगाह डालते ही चोरों ने देखा कि गागर में काला साँप था। वह उसे देखते ही क्रोधित हो गए। वह कहने लगे: साधु ने झूठ बोला था। एक चोर ने सलाह दी: यह गागर उसी साधु के पास जाकर रख देते हैं ताकि यह काला साँप उसे काट ले। झूठ बोलने का फल पाकर दूसरी दुनिया को पधार जाएगा। दूसरों ने उसके सुझाव को स्वीकार किया। चोर गागर को उठाकर साधु के पास ले गए और साधु के सिर की ओर रख गए। जब भक्त पीपा जी सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि सोने की मोहरों से भरी गागर उनके पास पड़ी थी।  गागर में से फिर आवाज आई: मेरे बँधनों को कोई काटेगा ? डरो मत मैं संतों की दासी हूँ। भक्त पीपा जी ने कहा: अच्छा ! दासी हो तो संतों में ही बाँट देते हैं। भक्त पीपा जी ने भोज की योजना बनाई और उसे माया से भोज की सभी आवश्यकताओं को एकत्रित किया और तैयारी की। पाँच सौ साधुओं तथा हजारों गरीबों ने भोजन ग्रहण किया। सारी संगत को भोजन खाकर संतुष्टि हुई। खाली गागर को ठाकुरद्वारें में रख दिया गया। वह किसी कँजूस आदमी का धन था जो गागर में कैद था। माया स्वतँत्र रहे तो अच्छी रहती है। यदि इसे संभालकर रखा जाए तो पाप का मूल बनती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.