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7. ठग साधु तथा सीता सहचरी जी

सीता सहचरी एक तो सुन्दर नवयौवना थी, दूसरा प्रभु भक्ति और पतिव्रता होने के कारण उसके रूप को और भी चार चाँद लग गए थे। जब एक नास्तिक पुरूष उसको देख लेता था तो वह लट्टू हो जाता था तथा बूरी नीयत से उसके पीछे लग जाता। एक दिन चार आवारा लड़कों ने सीता जी का सत लूटने का मन बनाया। उन्होंने साधुओं का रूप धारण कर लिया और पीपा जी के साथ घूमने लगे। एक दिन ऐसा सबब बना कि एक मंदिर में रात गुजारनी पड़ी। मंदिर में दो कमरे थे तथा आसपास घना जँगल था। उस दिन भक्त पीपा जी ने सीता जी को एकान्त कमरे में सोने के लिए कहा तथा आप साधुओं के साथ कोठड़ी के दूसरे कमरे में सोने चले गए। शायद भक्त जी ने उन बदमाशों की परीक्षा लेनी थी, इसलिए उन्होंने सीता जी को अलग सोने के लिए कहा। चारों बदमाशों ने योजना बनाई कि वे अकेले आधी रात साथ वाले कमरे में जाएँगे और सती सीता ता सत भँग करेंगे। आधी रात को एक पापी दबे पाँव सीता के कमरे में गया और यह सोचता रहा कि न ही पीपा को और न ही सीता को मेरे आने की खबर है और उसकी कामना पूरी होने में कोई कसर न रहेगी। आखिर सीता है तो एक स्त्री ही ना। दबे पाँव जब वह हाथ से टटोलता हुआ सीता के आसन के पास पहुँचा और सीता को जल्दी से दबाने का यत्न किया तो वह बाजू फैलाकर वहीं गिर पड़ा। तलाशने पर पता चला कि वह कोमल तन वाली सुन्दर स्त्री नहीं बल्कि लंबे बालों वाली शेरनी है। वह डर के मारे गिरता हुआ उल्टे पाँव बाहर आ गया। उसका कलेजा उसके वश में नहीं था। उसे गिरता हुआ देखकर दूसरे पापी भी बाहर चले आए और पूछने लगे कि क्या माजरा है ?

उसने उत्तर दिया: सीता का तो पता नहीं परन्तु उसके बिस्तर पर एक शेरनी लेटी हुई है। वह मुझे चीरने ही लगी थी कि पता नहीं कौन से अच्छे कर्म आगे आ गए तथा मेरे प्राण बच गए। सबने कहा: पगला कहीं का ! सीता ही होगी। तुम्हें गलती लगी होगी कि वह शेरनी है। चलो उजाला करके देखते हैं। उजाला करने पर उन्होंने देखा कि वास्तव में वहाँ शेरनी लेटी हुई थी। उसे देखते ही चारों दौड़ गए। उन्होंने जाकर पीपा जी को जगा दिया। उनकी समाधि टूटने पर उनसे कहा कि सीता के आसन पर एक शेरनी लेटी हुई है। या तो रानी सीता कहीं चली गई है या फिर उसे शेरनी ने खा लिया है। पापी पुरूषों की यह वार्त्ता सुनकर वह बोले: सीता तो वहीं होगी परन्तु आपका मन और आँखें अंधी हो चुकी हैं। चलो, मैं आपके साथ चलता हूँ। भक्त पीपा जी ने साथ वाले कमरे में पहुँचकर आवाज दी: सहचरी जी ! आगे से सीता जी बोली: जी भक्त जी ! भक्त पीपा जी बोले: सहचरी जी बाहर आ जाओ। सीता जी को बाहर आया देखकर चारों पापी बहुत शर्मिन्दा हुए और सूर्य निकलने के पहले ही भाग गए। प्रभु ने सीता की रक्षा की। भक्त पीपा जी ने रानी सीता जी से कहा: तुम्हें राजमहल लौट जाना चाहिए। कई लोग तुम्हारें यौवन पर मुग्ध हो जाते हैं तथा तुम्हें कष्ट देने का यत्न करते हैं। यह सुनकर रानी सीता जी ने निवेदन किया: हे स्वामी ! यदि आपके साथ रहते हुए भी डर है तो बताइए मैं राजमहलों में कैसे रहूँगी ? राजमहल तो होते ही पाप का घर हैं। मैं आपको कोई कष्ट नहीं देती। रक्षा तो न आपने करनी हैं और न मैंने। हमरा रक्षक परमात्मा है। स्वामी जी, स्त्री अपने पति परमेश्वर के चरणों में ही खुश रह सकती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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