6. सीता सहचरी की रक्षा
जैसे ही यह बात फैली कि राजा तथा उनकी रानी दर्शन करके आए हैं तो लोग पीपा जी के
दर्शन के इच्छुक हुए। कई लोग तो पीपा जी को प्रभु का रूप समझकर उन्हें पूजने लगे।
राजा पीपा जी को यह बात पसन्द न आई। वह अपनी रानी सीता को लेकर जँगल की तरफ चल पड़े।
कुछ ही दूर चलते हुए उन्हें एक पठान मिला। वह पठान बड़ा बेईमान और स्त्री रूप का
शिकारी था। वह राजा पीपा जी और रानी का पीछा करने लगा। चलते-चलते रानी सीता जा को
प्यास लगी। वह जल के तालाब से पानी पीने लग गई। राजा प्रभु के नाम का सुमिरन करते
हुए आगे बढ़ता गया। सीता जी तथा राजा में फासला पड़ गया। पठान रानी सीता की तरफ बढ़ा
और उसे उठाकर जँगल में एक तरफ ले गया। सीता ने शीघ्र ही परमात्मा को याद किया। प्रभु
हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। वह वहाँ शेर का रूप धारण करके आए और भक्त पीपा
जी की पत्नी रानी सीता जी की इज्जत को बचा लिया। शेर ने अपने पँजों से पठान का पेट
चीर दिया और पठान मर गया। शेर चला गया। इतने में प्रभु सन्यासी के रूप में सीता जी
के समक्ष प्रकट हुए और कहने लगे कि बेटी सीता ! तुम्हारा पति तुम्हारा इन्तजार कर
रहा है। चलो, तुम्हें उसके पास छोड़ आऊँ। सन्यासी ने रानी सीता को राजा के पास पहुँचा
दिया और आप अदृश्य हो गए। सीता को अनुभव हुआ कि प्रभु जी स्वयं अपने दर्शन दे गए।
वह उसी समय राम ! राम ! सुमिरन करने लगी।