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3. स्वामी रामानंद जी को मिलना

राजा पीपा काशी जा पहुँचे। गँगा स्नान किया और स्वामी जी के आश्रम की और बढ़े। स्वामी यह जाँचना चाहते थे कि क्या राजा पीपा वास्तव में भक्ति के मार्ग पर चल पड़ा था या नहीं। स्वामी जी ने आश्रम के बाहर वाले दरवाजे को बंद करवा दिया तथा आज्ञा दी कि दर्शन के लिए आज्ञा लिए बिना कोई न आए। राजा पीपा जब दर्शन के लिए बढ़े तो उसने फाटक को बन्द पाया। सेवक ने कहा कि गुरू के दर्शन के लिए आज्ञा लेना आवश्यक है। राजा ने सेवक को आज्ञा प्राप्त करने के लिए अंदर भेजा। सेवक ने स्वामी जी को प्रभु की भक्ति में मग्न पाया।  सेवक ने प्रार्थना की तो स्वामी जी ने सहज भाव से कहा: गगनौर का राजा आया है। वह अपने साथ रानियाँ, हाथी, घोड़े, धन तथा दास दासियों को लाया है। हम गरीब हैं। हमें राजाओं से क्या वास्ता ? उसे कहो हमारा राजाओं से मेल नहीं हो सकता। वह मंदिर में जाकर लीला करें। सेवक ने स्वामी जी का संदेश राजा पीपा जी को सुनाया तो राजा ने एकदम हुक्म दिया कि सारा सामान बाँट दो। सब हाथी, घोड़े वापिस ले जाओ। रानी सीता के सारे आभूषण भी भेज दो। यहाँ पर रानी सीता और हम केवल तीन कपड़ों में ही रहेंगे। पीपा जी ने अपने हाथों में पहना हुआ सोना भी उतार दिया तथा गरीबों में बाँट दिया। राजा ने सब कुछ दान कर दिया तथा दास-दासियों को गगनौर वापिस जाने का हुक्म दिया। स्वामी जी के दर्शन की अभिलाषा और भी बढ़ती गई। उसने फिर सेवक को भेजा। सेवक ने स्वामी जी को जाकर कहा: महाराज जी ! राजा पीपा आपके दर्शनों के अभिलाषी हैं। कृपा करके उनकी इच्छा पूरी कीजिए। स्वामी रामानंद जी ने कहा: राजा को कहो यदि इतनी जल्दी है तो कुएँ में छलांग लगा दें। वहाँ जल्द ही परमात्मा के दर्शन हो जाएँगे। ऐसा कहकर स्वामी जी ने राजा पीपा जी की दूसरी परीक्षा लेनी चाही। सेवक ने जाकर यह संदेश राजा पीपा जी को दिया। पीपा जी यह सुनकर अपनी जान की परवाह न करते हुए कुएँ की और भाग उठे। रानी सीता भी दौड़ पड़ीं। जैसे ही स्वामी जी को यह मालूम हुआ कि राजा कुएँ में छलाँग लगाने जा रहा है, उन्होंने ऐसी रचना रचाई कि राजा को कुआँ ही न मिले। वह तो केवल राजा की परीक्षा लेना चाहते थे। राजा भागता गया। रास्तें में उसे स्वामी जी के शिष्य मिले। शिष्यों ने राजा से कहा: हे राजन ! गुरू जी ने आपको याद किया है। पीपा जी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि मेरे भाग्य खुल गए जो मुझ जैसे पापी को गुरू जी ने याद किया। वह उनके शिष्यों के साथ स्वामी जी के पास पहुँचे। जैसे जी राजा को स्वामी रामानंद के दर्शन हुए वह एक दम से उनके चरण पकड़ने के लिए झुके।  चरण पकड़ते ही उसने स्वामी जी से याचना की: हे गुरू जी ! मेरा मन ईश्वर की पूजा की तरफ लगाओ। स्वामी जी बोले: उठो ! राम के नाम का जाप करो। केवल राम जी तुम्हारा कल्याण करेंगे। स्वामी दयावान हो गए और उन्होंने पीपा जी को हरि नाम की लग्न लगा दी और अपना आर्शीवाद देकर अपना चेला बना लिया। पीपा जी राम नाम का जाप करते हुए राम रूप होने लगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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