1. देवी भक्त राजा
पीपा जी गगनौर के राजा थे। इनका जन्म 1483 विक्रमी में हुआ था। अपने पिता जी की
मृत्यु के बाद उन्होंने उनका राज तख्त संभाला। वह युवा तथा सुन्दर राजकुमार थे। पीपा
जी ने सुन्दर से सुन्दर रानी से विवाह किया और कुल 12 राजकुमारियों के साथ विवाह
करवाया। राजा अपनी सबसे छोटी रानी तथा सबसे सुन्दर राजकुमारी सीता पर मोहित हुआ करते
थे। वह उसके साथ इतना प्यार करते थे कि हमेशा उसकी परछाई बनकर रहते। जहाँ पीपा जी
राजा थे वह राजकाज और स्त्री रूप के अतिरिक्त देवी दुर्गा के भी उपासक थे। वह कई
बार भक्तों को अपने राजमहल में बुलाकर भोजन करवाया करते। उनकी रानियाँ भी भक्तों के
भजन सुनती। राजा के महल में साधू और ब्राहमणों का बहुत आदर किया जाता था। उनके
पूर्वज ऐसा करते थे तथा कभी भी पूजा के बिना न रहते। उन्होंने राजभवन में मंदिर बनवा
रखा था।
भक्ति की और मुड़ना: एक दिन पीपा जी को पता लगा कि उनके
शहर में वैष्णवों की एक मंडली आई है। राजा के भक्त ने राजा से प्रार्थना की- महाराज
! शहर में वैष्णव भक्त आए हैं, हरि भक्ति के गीत बड़े प्रेम तथा रसीले सुर में गाते
हैं। सेवकों की यह बात सुनकर राजा के मन में भक्तों के दर्शन करने की इच्छा हुई।
राजा ने अपनी रानियों से सलाह की तथा संत मंडली के पास गया। वह हाथ जोड़कर बोला कि
हे भक्त जनों ! आप मेरे राजमहलों में चरण डालकर उसे पवित्र करें। तीव्र इच्छा है कि
भगवान महिमा श्रवण करें तथा भोजन भंडारा करके आपकी सेवा का लाभ प्राप्त हो। कृपा
करके प्रार्थना स्वीकार कीजिए। पीपा जी की यह प्रार्थना संत मंडली के मुखी ने
स्वीकार कर ली। राजा ने अपने सेवकों को सारे प्रबन्ध करने का आदेश दिया। सारी तैयारी
की गई। संत मंडली ने भजन गाए। भजन सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। राजा तथा उसकी
रानियों ने संतों की बहुत विनम्रता से सेवा की। संतों को भी भजन सुनाकर अधिक आनन्द
प्राप्त हुआ परन्तु जब उन्हें यह जानकारी हुई कि राजा मूर्ति पूजक हैं तो उनके दिल
को दुख हुआ। वह संत स्वामी रामानंद के पूजारी थे। सर्वशक्तिमान परमात्मा को
सर्वव्यापक तथा अमर मानते थे। भोजन खाकर उन्होंने ईश्वर से अराधना की- हे ईश्वर !
राजा का मन दुर्गा की मूर्ति पूजा की जगह उसकी महान शक्ति की और लगाएँ। प्रभु ने
संतों की प्रार्थना जल्द ही स्वीकार की तथा राजा को अपना भक्त बनाने के लिए उसे
नींद में स्वप्न द्वारा प्रेरित किया।