5. योगियों से भेंट
एक बार भक्त बेणी जी के पास कुछ संत जन तीर्थों पर भटकते हुए आए। उनमें से कुछ योगी
भी थे। जो कि योग साधना में माहिर थे। वह सब भक्त बेणी जी के पास परमात्मा के नाम
पर बहसबाजी करने के लिए आए थे कि किस प्रकार से केवल एक परमात्मा का नाम मन में
बसाना, योग साधना से ही बहुत ज्यादा बढ़कर होता है। योगियों ने आते भक्त जी से
बहजबाजी प्रारम्भ कर दी। योगी बोलेः भक्त बेणी जी ! हम आपसे किसी बात को लेकर
वार्तालाप करना चाहते हैं भक्त बेणी जी बोलेः योगी महाराज ! पहले आप भोजन पानी
ग्रहण करें, उसके बाद बातचीत भी हो जाएगी। किन्तु योगी बोलेः पहले आप हमारे प्रश्नों
का सही जवाब देकर हमें सन्तुष्ट कीजिए, तदुपरांत हम भोजन पानी ग्रहण करेंगे। भक्त
बेणी जीः योगी महानुभावों ! जैसी परमात्मा की इच्छा। एक योगी बोलाः हम तीर्थों पर
जाकर स्नान करते हैं और भ्रमण करते हैं, किन्तु हमनें तो सुना है कि आप कहते हैं कि
नाम जपने वाले को तीर्थों पर जाने का फल घर में बैठे ही प्राप्त हो जाता है। भक्त
बेणी जीः योगी महाराज ! परमात्मा का नाम वो ही जप सकता है, जिसने अपने मन को एकाग्र
किया हो, किन्तु मन को एकाग्र करने के लिए किसी पूर्ण गुरू की तलाश करनी चाहिए वो
ही आपको मन को एकाग्र करने के लिए परमात्मा का अमृतमयी नाम देते हैं। किन्तु जो
इन्सान अपने मन को वश में नहीं कर सकता वह तो इधर-उधर ही भटकता रहता है और इधर-उधर
भटकने वाला इन्सान तो तीर्थ का भ्रमण ही करेगा वो परमात्मा का नाम क्यों जपेगा ? हम
यह नहीं कह रहे कि तीर्थों पर मत जाओ। हम तो यह कह रहे हैं कि अगर आप तीर्थ यात्रा
पर जा रहे है तो इधर-उधर की बातें करने का क्या लाभ। आप परमात्मा का नाम जपते हुए
जाओ और नाम ही जपते हुए आओ। किन्तु एकांतवास में अगर आप नाम जपते हैं तो आपको वह
परमात्मा शीघ्र प्राप्त हो जाता है। दूसरा योगी बोलाः हम इड़ा, पिंगला और सुखमना का
अभ्यास करते हैं। (इड़ाः बाँयी नास की नाड़ी, जिस रास्ते जोगी लोग प्राणायाम करते
वक्त स्वास ऊपर की और खींचते हैं। पिंगलाः दाँयी नास की नाड़ी, जिस रास्ते प्राण
उतारते हैं। सुखमनाः नाक के ऊवरवार की नाड़ी, जहां पर प्राणायाम के समय प्राण टिकाते
हैं।) भक्त बेणी जी बोलेः योगी महाराज ! क्या इस यूक्ति से आपको परमात्मा की
प्राप्ति हुई ? यह सुनकर सभी योगी एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। तब भक्त बेणी जी ने
कहाः परमात्मा का नाम जपने से यह तीनों चीजें करने की कोई आवश्यकता नहीं रहती या वह
अपने आप प्राप्त हो जाती हैं, तो फिर इतनी कठिन साधना करने की क्या आवश्यकता है।
सभी योगी निरूतर हो गए।
इड़ा पिंगुला अउर सुखमना तीनि बसहि इक ठाई ॥
बेणी संगमु तह पिरागु मनु मजनु करे तिथाई ॥१॥
संतहु तहा निरंजन रामु है ॥
गुर गमि चीनै बिरला कोइ ॥
तहां निरंजनु रमईआ होइ ॥१॥ रहाउ ॥ अंग 974