1. जन्म
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जन्मः 1630 विक्रमी
जन्म स्थानः असनी नगर
जाति: ब्राहम्ण
आध्यात्मिक ज्ञानः माया में न फँसे, क्योंकि मनुष्य माया में फँसकर जगत के
पालनहार यानि परमात्मा को भुला देता है। परमात्मा को हमेशा याद रखें।
भक्त बेनी (बैणी) जी का पुरा नामः श्री ब्रहमबाद बेनी जी
भक्त बेनी जी का समयकालः 15 शताब्दी
बाणी में योगदानः 3 शब्द, 3 रागों में
रागः सिराराग, रामकली और राग प्रभाती
बेणी जी का पुरा नाम श्री ब्रहमबाद बेनी जी था। आप संवत 1630
विक्रमी को असनी नगर में पैदा हुए। आपके विषय में अधिक इतिहास तो नहीं मिलता। एक
जीवन घटना मिलती है जो भाई गुरदास जी ने नीचे लिखी पउड़ी में ब्यान की है। भक्त बेणी
जी के जन्म या परिवार के बारे में प्राचीन स्रोत, साहित्य बिल्कुल खामोश है।
मैकालिफ बिना किसी स्रोत का जिक्र किए आपका जन्म तेरहवीं सदी का अन्त मानता है। इसी
तरह एक पँजाबी पत्रिका इन्हें मध्यप्रदेश के ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए दर्शाती
है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में जो आप की बाणी दर्ज है, उससे स्पष्ट होता है कि
आप का सम्बन्ध निरगुणवादी भक्ति के साथ है और हो सकता है कि भक्ति लहर के उत्तर
भारत में दाखिल होने वालों के प्रॅमुखों में आप हों। भाई गुरदास जी अपनी रचना में
भक्त बेणी जी की तस्वीर एक एकान्तवास प्रभु रँग में रँगे हुए भक्त के रूप में करते
हैं। आप हमेशा भक्ति में लीन रहते। कुछ भी हो आपकी रचना में गहरी दार्शनिकता और
सामाजिक चित्र का रूप सामने आता है, जो धार्मिक कर्मकांडों का सख्ती से विरोध ही नहीं
करता बल्कि ब्राह्मण एवँ योगी परम्परा द्वारा किए प्रपँचों को भी नँगा करने में
समर्थ था। आप जी के व्यक्तित्व के बारे में भट कलय इस तरह लिखते हैः
भगतु बेणि गुण रवै सहजि आतम रंगु माणै ।।
जोग धिआनि गुर गिआनि बिना प्रभ अवरु न जाणै ।। अंग 1390
(भाई गुरदास जी, वार 10):
गुरमुखि बेणी भगति करि जाइ इकांतु बहै लिव लावै ।।
करम करै अधिआतमी होरसु किसै न अलखु लखावै ।।
घरि आइआ जा पुछीऐ राज दुआरि गइआ आलावै ।।
घरि सभ वथू मंगीअनि वलु छलु करि कै झथ लंघावै ।।
वडा सांगु वरतदा ओह इक मनि परमेसरू धिआवै ।।
पैज सवारै भगत दी राजा होइ कै घरि चलि आवै ।।
देइ दिलासा तुसि कै अणगणती खरची पहुंचावै ।।
आथहु आइआ भगति पासि होइ दइआलु हेतु उपजावै ।।
भगत जनां जैकारू करावै ।।
अर्थः किसी महापुरूष की संगत के कारण बेणी एकांत में भक्ति करने
जाता था। समाधी लगाकर बैठ जाता था। वह भक्ति करता हुआ प्रकट न करता, उसे गुप्त रखता।
जब घर जाता तो उसकी स्त्री पूछती कि कहाँ गए थे। तो भक्त जी कहते कि वह राजा के यहाँ
राज दरबार में कथा करने गया था। जब उसकी पत्नी घर की जरूरतों की माँग करती तो भक्त
जी झूठ बोलकर दिन बिता देते। एक दिन भक्त जी ने सच्चे मन से परमात्मा जी को याद किया
तो परमात्मा ने चमत्कार दिखाया और स्वयँ सारी वस्तुएँ लेकर भक्त जी के घर पर आए।
भक्त जी को भी जंगल में जाकर दर्शन दिए।