3. विद्याध्यन
माँ हर बच्चे की प्रथम गुरू और उस्ताद है। पीर बख्श ने लिखा है कि माता मरीअम फरीद
जी को फकीरी का उपदेश देती रहीं:
बे-बंदगी रब जी करा बावा, तुसां राह फकीरी दा मल्लणा ए ।।
मती दे फरीद नूँ नित माई, तुसां कहे असाडे ते चलणा ए ।।
जैकर जींवदा मर के फेर जीवें, दर दस्स कि पिआर दा झल्लणा ए ।।
देंदी तांघ सलाकहै पीर बखशा, जिहदा नफर करके तेनूँ घल्लणा ए ।।
शेख फरीद जी ने बचपन में गाँव की मस्जिद के मदरसे से ही तालीम
शुरू की। अक्षर ज्ञान होने के पश्चात उन्होंने कुरान शरीफ पढ़ना प्रारम्भ किया। रात
की चार घड़ी की निन्द्रा के इलावा दिन रात का समस्त समय वह कुरान को कँठ यानि याद
करने में व्यतीत करते। शेख फरीद जी के समय के पहले से ही मुलतान में मकतब यानि उच्च
विद्या प्रदान करने वाली पाठशालाएँ थीं। उनके विद्या प्रदान करने वाले महान आलम और
पूर्ण फकीर यानि संत होते थे। उन्हें इस्लाम मत, इस्लाम के इतिहास तथा कुरान मजीद
की आयतों के पूर्ण अर्थों का ज्ञान होता था। अरबी ओर फारसी मुख्य भाषाएँ थीं। शेख
फरीद जी हजरत मौलाना मिनहाज दीन के मकतब में दाखिल हुए। माता मरीअम के ध्यान रखने
के परिणामस्वरूप बाबा जी ने बाल अवस्था में ही कुरान को जुबानी याद कर लिया था।
उन्होंने अभ्यास कर लिया और वे 24 घंटें में एक बार कुरान की बाणी का पाठ कर लेते।
16 वर्ष की आयु में शेख फरीद जी अपने माता पिता के साथ मक्के हज करने गए। उन दिनों
हज जाना अत्याधिक कठिन और तपस्या का कार्य था। मुलतान से पैदल चलकर सिंध तथा
बलोचिस्तान से होते हुए मक्का पहुँचा जाता था। पैदल, बैलगाड़ियों तथा घोड़ों और ऊँटों
पर समस्त रास्ता पूर्ण करना पड़ता था। शेख फरीद जी को ये यात्रा सम्पन्न करने में एक
वर्ष का समय लगा। शेख फरीद जी वापिस मुलतान अपने स्कुल में पहुँच गए और पढ़ाई शुरू
कर दी। वह मन लगाकर पढ़ने लगे तथा एक दरवेश जैसा लिबास ग्रहण कर सँयम भरे जीवन मार्ग
पर चलने लगे। एक दिन आप एक पुस्तक “नफा तिरमजी“ का अध्ययन कर रहे थे कि मकतब में उस
समय के प्रसिद्ध व करामाती भक्त ख्वाजा कुतबदीन बख्तियार काकी आ पधारे। उन्होंने
सुना कि शेख फरीद जी सबसे बुद्धिवान और गुणवान हैं। उन्होंने शेख फरीद जी से पूछा:
शहजादे ! कौन सी पुस्तक पढ़ रहे हो ? शेख फरीद जी ने प्रेम से कहा: हुजूर ! बुजुर्गों
तथा अल्लाह ताला की कृपा से “नफा“ पढ़ रहा हूँ। फरीद जी का उत्तर सुनकर वे अति
प्रसन्न हुए और वर दे दिया: “खुदा ने चाहा तो जरूर नफा ही होगा।“ काकी जी की संगत
करके शेख फरीद जी इतने प्रभावित हुए कि वह उनके अनुयायी बनने को उत्सुक हो गए। काकी
जी दिल्ली में निवास करते थे। शेख फरीद जी ने उनसे निवेदन किया: हुजूर ! मैं दिल्ली
में आपकी शरण मे आने का इच्छुक हूँ। काकी जी ने कहा: शहजादे ! पढ़ाई करो। एक अच्छा
सूफी फकीर बनने के लिए पूर्ण विद्या अति अनिवार्य है। एक अनपढ़ या कम पढ़ा लिखा सूफी
फकीर एक प्रकार से लोगों में हास्य का विषय बन जाता है। विद्या पूर्ण करके तुम मेरे
पास आ जाना। शेख फरीद जी मुलतान से पढ़ाई पूरी करके उच्च मकतब में पढ़ने के लिए कँधार
चले गए। पर वहाँ मन न लगा तो बगदाद चले गए। बगदाद में उस समय इलाही प्रसिद्धि वाले
वली औलीए हजरत शेख शहाब-उ-दीन सुहारावर्दी, सैफ दीन बाबरजी, बहा-उ-दीन जकरीआ आदि
थे। इनकी संगत में रहकर आपने नफास एवँ मन की सफाई पर ध्यान दिया और अभ्यास किया।
परन्तु उनके मन में काकी जी बसे हुए थे। बगदाद से कई देशों का भ्रमण करने के बाद आप
घर ना जाते हुए दिल्ली पहुँच गए। काकी जी के चरणों में सिर रखकर उन्हें अपना
मुर्शिद धारण कर लिया। उन्होंने थापना दे दी। शेख फरीद जी जुहद कमाने लगे।