|
|
|
1. जन्म
-
जन्मः 1175 ईस्वी
1188 ईस्वी में आप पाकपटन में विराजे।
पिता जी का नामः शेख जलालदीन सुलेमान
माता जी का नामः मरीयम (कुरसम)
जन्म किस स्थान पर हुआः खेतवाल (चावली मशेक, जिला मुल्तान, पाकिस्तान)
फरीद शब्द का अर्थः अरेबिक शब्द में इसका अर्थ है युनिक यानि अनोखा
बाणी में योगदानः 4 शब्द 2 रागों में तथा 112 सलोक, कुल जोड़ः 116
सोलह साल की आयु तक आपने हज की रस्म सम्पूर्ण करके हाजी की पदवी भी हासिल कर ली
थी
सारा कुरआन जुबानी याद करके आप हाफिज़ भी बन गए थे।
आपके कितने विवाह हुएः 3
पहली पत्नि का नामः हजरबा
दुसरी पत्नि का नामः शारदा
तीसरी पत्नि का नामः शकर
आपकी पहली पत्नी हजरबा थी जो दिल्ली के गुलाम बादशाह बलबन की पुत्री थी।
आपकी कितनी सन्तान थीः 8 (5 पुत्र और 3 पुत्रियाँ)
आपके पहले पुत्र का नामः शेख शहाब-उ-दीन
आपके दुसरे पुत्र का नामः शेख बदर-उ-दीन
आपके तीसरे पुत्र का नामः शेख निजाम-उ-दीन
आपके चौथे पुत्र का नामः शेख यकूब
आपके पाँचवें पुत्र का नामः शेख अब्दुल्ला
आपकी पहली पुत्री का नामः बीबी फातिमा मौलाना
आपकी दुसरी पुत्री का नामः बीबी फातिमा मसतूरा
आपकी तीसरी पुत्री का नामः बीबी शरीफां
जोती जोत कब समायेः 1266 ईस्वी
प्रसिद्ध स्थानः पाकपटन चावली मुशैका ग्राम, काबूला (एक कुँआ, जिसमें शेख फरीद
जी अपने शरीर को लटकाकर परमात्मा का नाम सिमरन करते थे।)
कितने नामों से जाने जाते हैः 101 नामों से
इन्हें शक्करगँज बाबा फरीद के नाम से भी पुकारते थे, क्योंकि इनकी माता जी इन्हें
शक्कर की पुड़िया देती थीं, जब यह नमाज पढ़ने के लिए जाते थे।
गुरू का नामः ख्वाजा कुतबदीन बख्तियार काकी
इनकी बातों में वो करामात थी कि एक बार तो धरती बोलने लगी कि मैं फरीद की हूँ।
फरीद जी के अनुसार एक पक्षी है और पचास शिकारी हैं, अर्थात आत्मा और शरीर तो एक
है, लेकिन उसका शिकार करने वाले, लोभाने वाले पसाचों हैं।
शेख फरीद जी का जन्म 1175 ईस्वी में हुआ था और 1188 ईस्वी में
आप बाहर के जँगली इलाके के शहर पाकपटन में बिराजे। इलाही प्यार, नेकी, भक्ति और
उच्च सदाचार का प्रचार करना शुरू किया। आपकी जानशीनी की गद्दी आपके बाद सन 1265 में
शुरू हुई तथा 12वें गद्दी नशीन शेख इब्राइम की श्री गुरू नानक देव साहिब जी के साथ
मुलाकात भी हुई थी। गुरू जी ने ही फरीद जी की बाणी को अपनी पोथी में लिखित रूप में
सुरक्षित रखा, जिसे श्री गुरू अरजन देव जी ने पूर्ण श्रद्धा के साथ श्री गुरू ग्रँथ
साहिब जी में शामिल किया। बाबा फरीद जी की गद्दी आज तक अमर है। पाकपटन अब पाकिस्तान
में है। बाबा शेख फरीद जी के पूर्वज : बाबा फरीद शक्करगँज के पूर्वज ऊँची कुल के
इस्लाम के अनुयाई अथवा नेक पुरूष थे। बाबा जी के पूर्वजों का कुरसी नामा बहुत दूर
से प्रारम्भ होता है। इस सूची में सर्वश्रेष्ठ नाम इब्राहीम बिन अदहम का आता है जो
बलख के बादशाह भी थे और भक्ति करने वाले उच्च फकीर भी थे। इब्राहीम के कुल का आरम्भ
हजरत उपर फरूक (634-44 ईस्वी) से हुआ। फरूक का पुत्र अब्दुल्ला, अब्दुल्ला का पुत्र
नासिर, नासिर से सुलेमान, सुलेमान का पुत्र अदहम, अदहम का पुत्र इब्राहीम (बादशाह
बलख), इसराक, अबुल फतिह शेख फरूख शाह (वालीए काबुल), शेख शिहाब-उ-दीन, शेख यूसफ,
शेख अहमद और शेख कमाल-उ-दीन सुलेमान। यह सूची उनके पूर्वजों की है जो काबुल और ईरान
में प्रसिद्ध रहे। इन्होंने सच्चे मुस्लमान बनने का प्रयत्न किया और इस्लाम की जी-जान
से सेवा की। बाबा शेख फरीद जी के माता पिता : शेख फरीद जी के दादा शेख शईब मुलतान
के गाँव कोतवाला के काजी थे। यह गाँव महारन और पाकपटन के बीच स्थित है। शेख शईब की
मृत्यु के पश्चात उनका बड़ा पुत्र शेख जमालुदीन गाँव का काजी बना। वह बचपन से ही
बँदगी वाला पुरूष था और उच्च विद्वानों से विद्या, मानवीय और ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त
करता रहा। आपका विवाह शेख वजीर-उ-दीन की पुत्री खुजंदी की सुपुत्री करसूम बीबी से
हुआ। शेख जमाल-उ-दीन के काजी होने के समय मुलतान के इलाकें में राज पलट गया। मुलतान
की राजधानी लाहौर थी। लाहौर मे गजनवी सरकार का अन्तिम बादशाह खुसरो मलिक था। इसी
राज पलट के समय बाबा फरीद ने माता करसूम बीबी की पवित्र कोख से 571 हिजरी अथवा 1175
ईस्वी में कोतवाल नगर में जन्म लिया। गाँव के काजी के घर पुत्र होने की खुशी समस्त
गाँव ने अत्याधिक हर्षोल्लास के साथ मनाई और गरीबों में मिठाइयाँ बाँटी गई। माता
करसूम स्वभाव, कर्म और शरीर से इतनी पवित्र और सुन्दर थी कि लोग उन्हें प्यार और
श्रद्धा से माता मरीअम कहकर पुकारते थे। माता मरीअम (करसूम) जी की माँ हजरत अली के
खानदान में से थीं। माता मरीअम (करसूम) जी में प्रभु की भक्ति के कारण कुछ अलौकिक
शक्तियाँ थीं। पर वह कभी इनका प्रदर्शन नहीं करती थीं। अगर कोई दुखी इन्सान उनके
दर्शन कर लेता तो उसके समस्त कष्ट दूर हो जाते।
|
|
|
|