28. सैद्धाँतिक दृष्टांत
भक्त रविदास जी ने एक बार सँगत के सामने सैद्धाँतिक दृष्टांत पेश किया : एक
तहसीलदार ने दो पटवारियों के नाम रिपोटें लिखीं कि फलानी तारीख तक अपने-अपने हलके
के नक्शे तैयार करके मेरे पास पहुँचो। यह रिर्पोटें जब उनके पास पहुँची तो एक पटवारी
ने तो अपनी तारीख तक नक्शा तैयार कर लिया, परन्तु दूसरे ने अपने अफसर के हुक्म को
रेश्मी रूमाल में लपेटकर अदब के साथ रख दिया और हुक्म की परवाह नहीं की। नियत समय
पर जब दोनों अदालत में पहुँचे तो तहसीलदार ने नक्शे माँगे और जिस पटवारी ने अपना
काम ठीक किया था, उसको तहसीलदार ने शाबाशी दी और काम की सराहना की, परन्तु दूसरे ने
जब हुक्का आगे करते हुए जो उसने रूमाल में लपेटा हुआ था, अपनी श्रद्धा प्रकट की तो
तहसीलदार ने क्रोध में आकर उस पर जुर्माना लगाकर नौकरी से अलविदा कर दिया। इसी
प्रकार जो भी मनुष्य केवल वेदादिक ग्रँथों का या अपने धार्मिक ग्रँथों का केवल अदब
करना ही जानता है और हुक्म की पालना नहीं करता उसको ईश्वर की दरगह में कोई स्थान
प्राप्त नही होता। पर जो अपने धर्म ग्रँथ का हुक्म पालन करता है वो परमात्मा के
दरबार में मोक्ष की पदवी प्राप्त करता है। केवल मूर्ति पूजा से कुछ भी नहीं हो सकता।
परमात्मा का नाम जपना और मन को शुद्ध रखना भी जरूरी है। आप मूर्ति पूजा जिन्दगी भर
करो, आप कभी भी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते। देवी देवताओं की पूजा से केवल समय और
पैसा बर्बाद होता है और जब प्राण निकल जाते हैं तो बाद में पछतावा भी बहुत होता है
कि हमने मूर्ति पूजा क्यों की। काशः हमने परमात्मा का नाम जपा होता, मन शुद्ध रखा
होता, हम तो जीवन भर तीर्थों पर ही भटकते रहे। लेकिन “अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ
चूग गई खेत“।
नोट: जैसे सिक्खों के गुरू, साहिब श्री गुरू ग्रन्थ
साहिब जी महाराज हैं। अगर हम केवल उनके आगे माथा टेकें तो हम गुरू वाले नहीं हो सकते।
माथा टेकने के साथ-साथ और अदब करने के साथ-साथ यदि हम उनका हुक्म मानें यानि कि जो
श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में लिखा हुआ है, उसके अनुसार ही जीवन यापन करें तभी हम
गुरू वाले हो सकते हैं।