27. ब्राहम्णों ने शिष्य बनना
चितौड़गढ़ में ब्राहम्णों ने शिष्य बनना
जब परमात्मा जी ने एक रविदास जी के कई रविदास बना दिए, तो
ब्राहम्णों और अहँकारियों का अहँकार टूट गया और वह कहने लगे कि देखो भई कलयुग का
कौतक, ब्राहम्णों, ऋषियों और मुनियों से परमात्मा को चमार ज्यादा प्यारा है। सभी
अहँकार त्यागकर भक्त रविदास जी के पास नाम दान के लिए अपनी-अपनी झोलियाँ फैलाकर खड़े
हो गए। जल का यह स्वभाव होता है कि आप चाहे कितना भी गर्म क्यों ना हो, परन्तु आग
को एकदम शान्त कर देता है यानि बूझा देता है। वैसे ही अगर संत क्रोध में भी आ जाए
तो भी शरणागत का भला ही माँगते हैं। भक्त रविदास जी के साथ भले ही ब्राहम्णों,
योगियों और अन्य साधूओं ने कितना भी निरादर किया, परन्तु आपने मित्र और शत्रू को एक
ही समझते हुए सबकी इच्छा पूर्ण की। भेषधारियों ने पुरातन भेष, कैंठीयाँ और मुन्दरियाँ
उतारकर फैंक दी और हरेक को हरि का रूप जानकर सेवा और सिमरन करने के लिए प्रतिज्ञा
की। चितौड़गढ़ में कोई भी अभागा जीव नहीं रहा होगा, जिसने भक्त रविदास जी की चरण धूल
को माथे पर लगाकर नाम दान की दात ना ली हो। भक्त रविदास जी ने कहा कि ब्राहम्णों के
छैः (6) कर्म होते हैं: 1. विद्या पढ़नी, 2. विद्या पढ़ानी, 3. दान देना, 4. दान लेना,
5. यज्ञ करना, 6. यज्ञ करवाना। इन छैः कर्मों को जो भी करता है, वो ब्राहम्ण है,
चाहे वो किसी भी जाति या कुल का हो और जो ब्राहम्ण कुल का होकर इन छैः कर्मों को नहीं
करता वो महा नीच और पापी है। कबीर जी ने भी कहा है:
कहि कबीर जो ब्रहम बीचारै सो ब्राहम्ण कहिअत हैं हमारे ।।
अब परोपकारी भक्त रविदास जी सभी को नाम दान देकर वापिस काशी की
तरफ चल दिए। राजा और रानी कई मीलों तक भक्त रविदास जी को विदा करने के लिए आए। अंत
में भक्त रविदास जी दोनों से विदा लेकर आप आगे चले गए। राजा और रानी, भक्त रविदास
जी को तब तक देखते रहे जब तक कि वह उनकी आँखों से ओझल ना हो गए।
काशी नगरी में ब्राहम्णों ने शिष्य बनना : भक्त रविदास
जी, काशी में वापिस आ गए हैं यह बात जँगल की आग की तरह पूरे नगर में घर-घर में फैल
गई। लोग उनके दर्शनों के लिए अमूल्य भेंटे लेकर उपस्थित हुए। चितौड़गढ़ के यज्ञ में
हुए अचरज कौतक को सुनकर तो पत्थर से पत्थर दिल भी प्रेम भाव से तर गए। कई अहँकारी
और जात अभिमानी ब्राहम्णों ने चरण पाहुल पीकर नाम दान प्राप्त किया। भक्त रविदास जी
की निर्मल जुगती अनुसार जिसने एक क्षण भर भी ध्यान लगाया वह जीवन मुक्त हो गया। नाम
का एक कण भी जिसके दिल में बस गया वह दैत्य से देवता बन गया।