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लँगर में चमत्कार

चितोड़गढ़ के राजा चन्द्रहांस के राज्य में पाँच दिन तक यज्ञ चलता रहा। आखिरी दिन सबके लिए एक स्थान पर खाना तैयार किया गया और एक खुले मैदान में लँगर बरताने का इन्तजाम किया। तमाम लोग इस स्थान पर पँगतें लगाकर बैठ गए और इस पँगत के बीच भक्त रविदास जी भी बैठ गए। बरताने वाले भोजन और मीठे भोजन, भाजीयों के बाटे लेकर बरताने के लिए खड़े हो गए तो सबकी निगाह एक ऊँचे आसन पर बैठे हुए भक्त रविदास जी पर पड़ी। पण्डित और अन्य संत और विद्वानों ने इस पँगत में बैठने से मना कर दिया और कहा कि इस चमार को अलग बिठाया जाए नहीं तो हम यज्ञ सम्पूर्ण नहीं होने देंगे। नम्बरवार ब्राहम्ण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र को भोजन खिलाना उचित है। ब्राहम्णों के मुकाबले में चमार का बैठना बल्कि ऊँचे आसन पर बैठना घोर पाप है। सभी अछूतों को उठाकर बाहर निकालो, तो भोजन किया जाएगा। इस झगड़े की खबर जब राजा-रानी को हुई तो उन्होंने हाथ जोड़कर ब्राहम्णों को समझाने का प्रयास किया, परन्तु “लातों के भूत, बातों से कब मानते हैं“। पण्डितों और पाखण्डियों ने यह बात लोगों के कानों में पड़ने ही नहीं दी और अपना शोर जारी रखा। जब रविदास जी अपने आसन से नहीं उठे तो ब्राहम्ण और योगी आदि पँगत छोड़कर बाहर निकलने शुरू हो गए और राजा के पास जाकर विनती की कि या तो इस चमार को उठाया जाए या फिर पँगतें अलग-अलग कर दी जाएँ। ब्राहम्णों की इस विनती पर राजा सहमत हो गया और पँगतें अलग-अलग दर्जे वार बिठा दी गईं और लँगर बरतना शुरू हो गया। परमात्मा जी की लीला : जब परमात्मा जी ने अपने प्राण प्यारे भक्त रविदास जी की हेठी देखी तो उन्होंने अपनी माया से रविदास जैसे अनेक रूप धारण कर दिए और अलग-अलग बैठी हुई पँगतों में एक-एक ब्राहम्ण और योगी आदि के साथ एक-एक रविदास बैठ गया, दाँए बाँए जिस तरफ भी कोई देखे, उसे रविदास जी बैठ दिखाई दें। सभी हैरान हो गए और भक्त रविदास जी को परमात्मा की जोत जानकर नमस्कार करने लगे। इस अदभूत लीला को देखकर भक्त रविदास जी ने "राग मारू" में एक बाणी उच्चारण की:

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै ॥
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥१॥ रहाउ ॥
जा की छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ॥
नीचह ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै ॥१॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै ॥
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरि जीउ ते सभै सरै ॥२॥१॥ अंग 1106

अर्थ: "(हे परमात्मा ! ऐसी कृपालता तेरे बिना और कौन कर सकता है ? गरीबों को मान बक्शने वाले गुसाईं तूँने ही मेरे सिर चँवर झूलाए हैं। जिसकी छोह से सारा सँसार दूर-दूर भागता है, उस पर तूँ ही दयाल हुआ है। नीचों को ऊच बनाने लगा, किसी से भी नहीं डरता यानि मेरा बूतों को गढ़ने वाला छोटों को बड़ा बना देता है और किसी से भी खौफ नहीं खाता। भक्त नामदेव जी, भक्त कबीर जी, भक्त त्रिलोचन जी, भक्त सधना कसाई और भक्त सैन नाई, परमात्मा की भक्ति करके ऊँचे हुए हैं यानि तर गए हैं। श्री रविदास जी कहते हैं कि हे संत जनों ! सुनो, यह सारी ताकतें परमात्मा के हाथ में हैं, यानि सारी बातें उससे ही सम्भव होती हैं।)"

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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