SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

25. राजा चन्द्रहांस द्वारा यज्ञ करवाना

भक्त रविदास जी के साथ ज्ञान चर्चा करते-करते यज्ञ का दिन भी आ गया। राजमहल के पास ही मैदान में तम्बू और कनातें लगाई गईं। कई साधू और संत आए थे और वह सोच रहे थे कि इसी बहाने भक्त रविदास जी के दर्शन भी हो जाऐंगे। जबकि ईर्ष्यावादी लोग अपने पुस्तकें लेकर अच्छी तरह से तैयारी करके ही आए थे। जोगी, जँगम, सिद्ध, त्यागी, बैरागी और सँन्यासी भी अपने-अपने चेले साथ लेकर आए थे। लँगर का प्रबँध भी शाही ढँग से किया गया था। ईश्वर को सरब व्यापी जानने वाले तो भक्त रविदास जी को परमात्मा का ही रूप मान रहे थे, परन्तु अहँकारी और दम्भी लोग उनकी निन्दा कर रहे थे। तब भक्त रविदास जी ने निन्दा करने वालों के लिए राग गउड़ी में बाणी उच्चारण की:

कूपु भरिओ जैसे दादिरा कछु देसु बिदेसु न बूझ ॥
ऐसे मेरा मनु बिखिआ बिमोहिआ कछु आरा पारु न सूझ ॥१॥
सगल भवन के नाइका इकु छिनु दरसु दिखाइ जी ॥१॥ रहाउ ॥
मलिन भई मति माधवा तेरी गति लखी न जाइ ॥
करहु क्रिपा भ्रमु चूकई मै सुमति देहु समझाइ ॥२॥
जोगीसर पावहि नही तुअ गुण कथनु अपार ॥
प्रेम भगति कै कारणै कहु रविदास चमार ॥३॥१॥ अंग 346

अर्थ: "(हे भाईयों ! जिस प्रकार कुँए के मेंढक को बाहर की नदियों और समुद्र की जानकारी नहीं होती, वो समझता है कि सारे जगत का बादशाह कुँआ ही है। इसी प्रकार अहँकार ने मन को मोह लिया है, इसको लोक परलोक की कुछ खबर नहीं, यह कहता है कि मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ। हे सारी दुनियाँ के सरदार परमात्मा जी ! मूझे केवल एक क्षण भर ही दर्शन दिखाओ, ताकि मेरो मन शान्त हो जाए। हे माधव ! मेरी मति को बिखिआ ने मलीन कर दिया है। जो कुदरत को नहीं जान सकती। इसलिए आप अपने दर, धर से मेहर की नजर करो ताकि मेरा भ्रम मिट जाए और मूझे अच्छी मत दे दो यानि मूझे सेवा सिमरन की जाँच समझा दो। जोगी देवता आदि तेरा अन्त नहीं पा सकते। तेरे गुण बेअंत हैं और कथन करने के बाहर हैं यानि तेरे इतने गुण हैं कि उनका कथन ही नहीं किया जा सकता। हे परमात्मा ! रविदास चमार केवल प्रेम भक्ति के लिए तेरे दर पर दुहाईयाँ देता है। आप दयालू हो, क्रिपालू हो, हमारे मन को प्रेरित करके अपनी भक्ति से जोड़ो। बस रविदास की यही इच्छा है।)" श्री रविदास जी का पवित्र उपदेश सुनकर हजारों जीवों के भ्रम वहम दूर हो गए और चरण परसकर नाम दान लेने के लिए अपनी इच्छाएँ प्रकट करने लगे, परन्तु दम्भी और निन्दक और भेषधारी और जिनके मन अहँकार की कालिख से पूरी तरह काले थे, वह फिर भी माथे पर बल चढ़ाकर बैठे थे। दूसरी तरफ हवन यज्ञ शुरू हो गया। हजारों रूपये की सामाग्री वेद मँत्र पढ़-पढ़कर यज्ञ कुण्ड में फैंकी जाने लगी। पण्डितों, योगियों और भेषधारियों ने राजा और रानी को अपनी और प्रेरित और खींचने का भरसक प्रयास किया और भाँति-भाँति के दृष्टांत देकर चमार की सँगत की निन्दा की परन्तु राजा रानी के मन पर कोई असर नहीं हुआ। सभी महात्माओं के लिए अलग-अलग आसन थे, परन्तु सबसे श्रेष्ठ और रतन जड़ित आसन तो केवल भक्त श्री रविदास जी के लिए ही तैयार किया गया था। ब्राहम्ण इस सत्कार को अपना निरादर समझते थे और अलग-अलग टोलियाँ बनाकर फसाद करने की तैयारियाँ कर रहे थे। जब यह टोलियाँ कई स्थानों पर निन्दा आदि करने लगीं तो राजा ने पूलिस को हुक्म दिया कि ऐसी व्यवस्था हो कि दँगा-फसाद ना हो पाए। जो फसादी शरारत करे उसे हथकड़ी डालकर हवालात में डाल दिया जाए। जब फसाद करने वाले फसाद करने के लिए ज्यादा ही उछलने लगे तो पूलिस ने उन्हें पकड़कर हवालात में डाल दिया। भक्त रविदास जी ने इस सारे दृश्य को देखकर राग आसा में बाणी उच्चारण की:

संत तुझी तनु संगति प्रान ॥
सतिगुर गिआन जानै संत देवा देव ॥१॥
संत ची संगति संत कथा रसु ॥
संत प्रेम माझै दीजै देवा देव ॥१॥ रहाउ ॥
संत आचरण संत चो मारगु संत च ओल्हग ओल्हगणी ॥२॥
अउर इक मागउ भगति चिंतामणि ॥
जणी लखावहु असंत पापी सणि ॥३॥
रविदासु भणै जो जाणै सो जाणु ॥
संत अनंतहि अंतरु नाही ॥४॥२॥ अंग 486

अर्थ: "(हे परमात्मा ! जो तेरे प्यारे संत हैं, जो तूझे सारे शरीरों में मौजूद जानते हैं, उनकी सँगत मेरे लिए प्रान जीवन है। मैंने गुरू के ज्ञान से जाना है कि संत देवताओं के भी देवता हैं। हे देवताओं को शक्ति देने वाले ईश्वर ! मूझे संतों की सँगत, संतों की ही कथा का आनंद, संतों का ही प्रेम बक्शो। संतों के ही कर्म और संतों के ही रास्ते पर लाओ। फिर संतों के दासों का दास ही बना दो। हे परमात्मा ! एक और चिंताबण (इच्छा पूरन करने वाली) भक्ति माँगता हूँ और जो असंत यानि कि वे लोग जिनमें कपट, खोटपना और अहँभाव, अभिमान आदि भरा हुआ है उन पापियों के दर्शन ना कराओ। रविदास जी कहते हैं– हे भाई ! आप जो जानो सो जानो यानि जो परमात्मा को जानता है, परमात्मा उसको प्यार करता है। संत और परमात्मा में कोई भेद नहीं, दोनों जोत करके एक ही रूप हैं। अथवा जो ईश्वर को सरबव्यापी जानता है। संतों की इज्जत और सत्कार वो ही करता है और वो ही जानता है।)"

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.