9. पहली बार परमात्मा के दर्शन
एक दिन अमृत समय यानि ब्रहम समय में रविदास जी समाधि में लीन हो गए। नेत्रों में
परमात्मा से बिछुड़ने के आँसू टपकने लगे। ठीक इसी प्रकार से जिस प्रकार से एक स्त्री
अपने परदेसी पति की जुदाई में तड़पती है और अपना आपा ही भूल जाती है। यह देखकर
परमात्मा जी आए और भक्त रविदास जी के पास ही बैठ गए। रविदास जी साक्षात चतुर-भुज
स्वरूप के दर्शन पाकर गद-गद हा गए और में यह शबद उच्चारण किया:
सिरीरागु ॥
तोही मोही मोही तोही अंतरु कैसा ॥
कनक कटिक जल तरंग जैसा ॥१॥
जउ पै हम न पाप करंता अहे अनंता ॥
पतित पावन नामु कैसे हुंता ॥१॥ रहाउ ॥
तुम्ह जु नाइक आछहु अंतरजामी ॥
प्रभ ते जनु जानीजै जन ते सुआमी ॥२॥
सरीरु आराधै मो कउ बीचारु देहू ॥
रविदास सम दल समझावै कोऊ ॥३॥ अंग 93
अर्थ: हे परमात्मा जी ! आप मेरे हो, मैं आपका हूँ, आप में और
मुझमें कोई अन्तर नहीं है, कोई भेद नहीं है, कोई फर्क नहीं है। तुने मुझे मोह लिया
है और मैं सदा के लिए तेरा ही हो गया हूँ, जैसे सोने और सोने के बने कँगन में कोई
फर्क नहीं होता। हे अनंत लीला के मालिक अगर मैं पाप नहीं करता तो तेरा पवित्र पावन
नाम किस तरह होता। हे दिलों के जाननहार माधो ! आप तो बड़े अच्छे हो, मालिक हो, इसलिए
मालिक से दास और दास से मालिक जाना जाता है अर्थात अगर दास ना होते तो आपको मालिक
कौन कहता। हे परमात्मा जी ! मुझे यह विचार और सुमत दो कि जब तक मैं शरीर में रहूँ,
तेरी सेवा और सिमरन से मुख ना मुड़े और ऐसे महात्माओं की सँगत दो जो तेरे जैसे ही
हों, जो सदा ही मन को समझाते रहें भाव यह कि तेरे रास्ते पर लाने वाले हों। भक्त
रविदास जी के यह शबद सुनकर परमात्मा ने उन्हें गले से लगा लिया और अभेद हो गए। फिर
हुक्म किया कि रविदास ! तुम्हें पापियों के कल्याण हित मैंने तुझे अपने रूप से अलग
करके भेजा है। आप पापों में लगे हुए जीवों को राम नाम देकर सुमार्ग पर ले आओ। सभी
एक-दूसरे से प्रेम करें। एक-दूसरे की इज्जत करें, क्योंकि जो मनुष्य, मनुष्य के लिए
भला नहीं सोच सकता, उसको मनुष्य नहीं बल्कि प्रेत समझना चाहिए। इस समय घोर कलयुग चल
रहा है अगर सभी मनुष्य सच रखने वाले, सच बोलने वाले हो जाऐंगे तो सतयुग लग जाएगा।
जब तक इन्सान पापों में सँलग्न हुआ रहेगा तब तक कलयुग छाया रहेगा। इसलिए सभी को नाम
से जोड़ो।