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8. पीरांदिता की ईर्ष्या

भक्त रविदास का गँगा के कँगनों वाला कौतुक और राजा-रानी के श्रद्धालू होने की कथा सुनकर जहाँ प्रेमी लोग रब के प्यारे भक्त रविदास जी के दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े, वहीं निदँकों की रातों की नींद हराम हो गई। महापुरूषों की निंदा करने वाला लोक और परलोक दोनों स्थानों पर इज्जत नहीं पाता, जबकि वो लोग भाग्यशाली होते हैं जो संतों और भक्तों की सेवा करके अपना जीवन सफल करते हैं। यह ठीक ही है:

संत ना होते जगत में, जल मरता सँसार ।।
नाम अमृत दे संत जन, देवें पार उतार ।।

काशी में शहर के अन्दर एक पीराँदिता नाम का मरासी मुस्लमान रहता था। यह बहुत भारी शैतान और निँदक था। रविदास भक्त की महिमा सुनकर वह रात दिन जलता रहता था। एक दिन उसने ब्राहम्णों को एकत्रित करके कहा कि यह रविदास चमार जहाँ मुस्लमानों के लिए खतरा है, वहीं पर यह तुम्हारे धर्म की भी मिट्टी पलीत कर रहा है। चमार होकर ठाकुर पूजता है, तिलक लगाता है, जनेऊ पहनता है, शँख बजाता है, जो कि इसका हक नहीं है। अगर ऐसे नीच आदमी को अपना धर्म बचाने के लिए मार भी दिया जाए तो कोई जुल्म नहीं है। इसने उल्टी गँगा बहा दी है। हमें ऐसे नीच मनचले आदमी को ऐसा दण्ड देना चाहिए कि कोई आगे से किसी के धर्म में दखलअँदाजी ना कर सके। वो दिन दूर नहीं जब लोग पण्डितों और ब्राहम्णों का मजाक किया करेंगे कि चमड़ा काटना, मूँह से खिँचना पर बैठना पण्डित बन कर। सबसे पहले इसके घर वालों और रिशतेदारों को ऐसी डांट लगाई जाए कि यह रामानँद के डेरे पर जाना बन्द कर दे और तिलक लगाना भी बन्द कर दे। अगर फिर भी बाज ना आए तो मैं आपके साथ दिल्लीपति सिकन्दर लोधी के पास जाऊँगा और इसकी शिकायत करेंगे।

ब्राहम्णों ने फसाद के लिए डट जाना : पीराँदिता द्वारा दी गई झूठी दलीलों से सभी ब्राहम्ण जल भूनकर कोयले हो गए और फैसला किया कि इस चण्डाल (भक्त रविदास जी) को जान से मार देना ही चाहिए। सारे के सारे ब्राहम्ण जोगी और सन्यासी आदि एकत्रित होकर रविदास जी के धर पर जाकर उनके पिता सँतोखदास जी से कहने लगे कि देखो तुम्हारा एक ही बेटा है। हमने उसे जान से मारने की ठान ली है, अगर तुम्हें उसकी जरूरत है तो उसे समझा लेना ही उचित होगा। हमारे धर्म में दखल देने का उसको कोई हक नहीं। चमार होकर वेशभूषा पण्डितों वाली पहनता है और भले लोगों को राम नाम पर धोखा करता है। पागलों जैसी बातें करके मूर्खों को बरगलाता है और अपने पैरों पर माथा टिकवाता है और पूजा का माल एकत्रित करता है जो कि केवल हमारा हक है। ब्राहम्ण यह कहकर चले गए। रात को पिता सँतोखदास जी ने सारी बिरादरी को एकत्रित किया और रविदास जी को भी बुला लिया। पिता जी ने हाथ जोड़कर कहा कि पुत्र जब तुमने जन्म लिया तो मुझे खुशी हुई थी कि मेरे कुल का चिराग आ गया है। परन्तु तुमने मेरी सारी उम्मीदों पर पानी ही फेर दिया है। तेरे रोज-रोज के कारनामों ने मुझे कहीं पर बैठने का नहीं रहने दिया। पण्डित और मौलवी सभी तेरे पर बिजली की तरह कड़कने को तैयार बैठे हैं। किसी दूसरे के धर्म में दखलअँदाजी करना मूर्खता होती है। अपना पैतृक कार्य करो और राम नाम को तिलाँजली दे दो। यह नाम तेरी जान का वैरी है। तेरी जान करके ही मेरी जान है। अगर तुझे नाम से प्यार है तो घर के अन्दर बैठकर नाम जप लिया कर। तेरा रामानँद जी के डेरे पर जाना इन लोगों को अच्छा नहीं लगता।

भक्त रविदास जी का सबको जबाब : जब सभी रिश्तेदार शोर मचाकर अपनी-अपनी बात कहकर शान्त हो गए तो रविदास जी ने बोलना शुरू किया। मेरे बन्धुओं ! क्या आपको पता है कि परमात्मा ने एक नूर से सारे सँसार का स्वरूप तैयार किया है। कुदरती कानून सभी के लिए एक जैसे हैं, क्या ब्राहम्ण और क्या शुद्र। सभी एक ही माटी के भाँडे हैं और सभी मल-मूत्र के थैले हैं। इन लोगों को चिन्ता इस बात की है कि इनका आदर घट रहा है। मैं चोरी नहीं करता, डाके नहीं डालता। जिस परमात्मा ने मुझे पैदा किया है मैं तो दो पलों के लिए उसका शुक्रिया अदा करता हूँ और उसका नाम जपता हूँ, तो क्या बूरा करता हूँ ? बाकी जो बात इन लोगों द्वारा मुझे दण्ड देने की है, वह केवल गिरी हुई हठधर्मी है। मुझे तो दण्ड यमदूत भी नहीं दे सकते। जब से गुरूदेव जी की बाँह पकड़ी हुई है, सारे डर दूर हो गए हैं। जन्म-मरण की चिन्ता चली गई है। आत्मा सदा अमर है और काल से रहित है। बेशक ही यह लोग मेरी हडडी-पसल्ली एक कर दें परन्तु राम नाम से मेरी प्रीत नहीं तोड़ सकते। ये सारे तो झक मारते हैं। मेरे सिर पर मेरे परमात्मा का हाथ है, मुझे किसी की मुहताजी नहीं। पिता जी आपको नाम की चिन्ता है कि हम सुखी बसते, हमारा नाम ऊँचा होता। आपकी यह आशा परमात्मा पूरी करेगा। जब तक धरती और आकाश कायम हैं, सूर्य और चन्द्रमाँ कायम हैं आपका नाम दुनियाँ में कायम रहेगा। शोर मचाने वाले सारे लोग झाग की तरह बैठ जाऐंगे। शेर की शरण में जाने वाले को गीदड़ों का भय नहीं रहता। “नीचह ऊच करे मेरा गोबिन्दु काहू ते ना डरै“।। पापियों को पवित्र करने वाला केवल एक नाम ही है, इसलिए आपको नाम जपकर अपना जन्म सफल करना चाहिए। रविदास जी का यह उत्तर सुनकर सारे रिशतेदार अपने भाग्य को ऊँचा समझने लगे और बेअंत शिष्य बनकर नाम जपने लगे और सभी शिक्षा लेकर अपने-अपने घरों को चले गए। जिस प्रकार चन्द्रमाँ के प्रकाश से अन्धेरा दूर होता जाता है, वैसे ही ईर्ष्या होने के जोर के कारण भक्त रविदास जी की महिमा बड़ने लगी। पण्डित, मौलवी, जोगी आदि बहसें कर-करके निराश हो गए। चमार बिरादरी के स्याने लोग अपनी कौम की उन्नति के लिए भक्त रविदास जी का साथ देने के लिए रजामँद हो गए और रात दिन सतसंग होने लगा, जिस तरह सूरज की रोशनी आकाश से सारे सँसार में फैल जाती है, ठीक वैसे ही रविदास जी की शोभा चारों वर्णों में होने लगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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