4. विवाह और उपरामता
रविदास जी को अपने कामकाज में लायक जानकर माता-पिता जी ने इनकी शादी करने की सोची।
पिता सँतोखदास जी ने अपने ससुर साहब बाहू जी को सन्देश भेजा कि दोहते के लिए कोई
रिशता जल्दी ढूँढकर बताओ जिससे रविदास जी का विवाह किया जा सके। विवाह मिरजापुर
गाँव में एक सुशील लड़की के साथ बिक्रमी संवत जेठ की सँगरांद के दिन निश्चित हुआ।
सँतोखदास जी की तरफ से अपने इकलौते पुत्र के विवाह की बड़ चड़कर तैयारी की गई।
उन्होंने सारे रिश्तेदार और इलाके के गरीबों को दान-पुण्य किया। दुसरे दिन अर्थात 1
जेठ को रविदास जी बारात सहित मिरजापुर पहुँच गए। लड़की वालों ने बारात का शानदार
स्वागत किया। रविदास जी का विवाह आपकी सुपत्नी श्री भागन देवी जी से सम्पन्न हुआ।
रविदास जी की उपरामता : रविदास जी के पिता जी ने रविदास जी की शादी यह सोचकर की थी
कि शायद घर-गृहस्थी में वह उदास रहना छोड़ देगा। पर सब कुछ उल्टा हुआ। आपकी सेवा और
सिमरन की रूची बल्कि एक कदम आगे बड़ गई। भक्तों और सँसारियों का जोड़ कभी भी नहीं हो
सकता यह बात सच सिद्ध हुई जिस प्रकार से कमल का फूल जल में रहते हुए भी जल के
स्पर्श से निरलेप रहता है। भाव यह है कि पानी जिना बड़ता है कमल का फूल भी उतना ही
बढ़ जाता है। जैसे गेंद को जितनी जोर से दबाकर मारा जाए वह उतनी ही ऊँची उछलती है।
वैसे ही मोह रूपी जाल ने आपकी कमल जैसी बिरती पर कोई प्रभाव नहीं डाला। आप अपने
कामकाज में जूते बनाकर कई गरीबों को मुफ्त में दे देते थे। आपकी इस बेपरवाही के
कारण परिवार का मन खिन्न हो जाता था। एक दिन रविदास जी के मन में एक विचार आया कि
नाम के बिना मुक्ति और गुरू के बिना जुगती प्राप्त नहीं होती। श्री रामचन्द्र जी और
श्री कृष्ण जी आदि सभी ने गुरू धारण किए थे। इसलिए अब सबसे पहला काम गुरू धारण करना
है, क्योंकि दिल को शान्ति और सूकुन देने वाला केवल गुरू ही होता है।