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1. जन्म

  • जन्मः 1414 (संवत 1471)
    जन्म स्थानः काशी, उत्तरप्रदेश
    पिता का नामः संतोखदास जी
    माता का नामः कौंस देवी जी
    आध्यात्मिक गुरूः रामानन्द जी
    जातिः चमार
    कुल आयुः 104 वर्ष
    देह कब त्यागी या जोती-जोत समाएः 1518 ईस्वी
    किस स्थान पर देह त्यागीः काशी, बनारस
    पैतृक व्यवसायः जुते बनाने का कार्य
    एक बार ब्राहम्णों द्वारा रविदास जी को लंगर में से उठा दिया गया क्योंकि वो चमार थे, किन्तु बाद में ब्राहम्णों को अपने आसपास और हर तरफ रविदास ही रविदास नजर आने लगे।
    गँगा ने स्वयं रविदास जी को देने के लिए अपना कँगन एक ब्राहम्ण को दिया था।
    मीराबाई के गुरू रविदास जी ही थे।
    बाद में राणा साँगा आदि भी इनके शिष्य बने।
    यह चमार जाति के थे, इसके बावजूद कई ब्राहम्णों ने इनके दीक्षा ली थी।

काशी में एक कालू नाम का चमार रहता था, जो जूतों को बनाने का कार्य करता था। कालू की पत्नी श्री लखपती माई जी की कोख से सँतोखदास का जन्म हुआ। बहुत ही अच्छे तरीके से बच्चे की पालना की गई। जवान होने पर इसकी शादी गाँव हाजीपुर में हारू चमार की सुपुत्री श्री कौंस देवी के साथ की गई। माता कौंस देवी बड़े सुशील स्वरूप और ऊँचें विचारों वाली देवी थी, पति सेवा में अपना जीवन सफल होना समझती थी। इस भाग्यशाली जोड़े ने बहुत समय तक परमात्मा की अराधना की और मन में कामना की कि हमारे यहाँ पर भक्त पुत्र पैदा हो ताकि हमारे कुल का उद्धार हो सके। घट-घट के जाननहार दीनानाथ ने दोनों की फरियाद सुन ही ली। उनके घर में संवत 1471 सन 1414 दिन रविवार पहिर रात रहते समय पुत्र की प्राप्ति हुई। पिता सँतोखदास को बड़ी खुशी हुई। बाजे बजाए गए और दान-पुण्य किया गया। दाई ने बालक के चिन्ह-चक्र देखकर पिता सँतोखदास और माता कौंस देवी को पातशाह पुत्र होने की बधाई दी और कहा कि मेरे हाथों से कई बालकों ने जन्म लिया परन्तु ऐसा बालक जन्मते हुए मैंने नहीं देखा, इसके सारे अंग अवतारों की तरह नूरो-नूर हैं। यह आपके नाम को जगत में ऊँचा करेगा। यह बालक आपके कुल का चन्द्रमाँ है।

नाम रखना : सुबह श्री सँतोखदास जी ने अपने घर पर पण्डित जी को बुलाया और बालक को लेकर आए। पण्डित जी, बालक के अंग, चिन्ह, चक्र, वरन आदि देखकर हैरान हो गए। वह खुशी से सँतोखदास जी से बोले कि भाई सँतोखदास जी आप तो बड़े भाग्यशाली हो, जो आपके यहाँ पर इतने गुणों वाला बालक उत्पन्न हुआ है, आपका कुल तर जाएगा। इसका तेज रवि (सूर्य) जैसा है, इसलिए इसका नाम रविदास रखो। इसने सँसारी जीवों के सुधार के लिए आपके घर में जन्म लिया है। इसके सिर पर शोभा का छत्र झूलेगा और चारों वर्णों के लोग इसका सत्कार करेंगे।

नोट: रविदास जी का जन्म हाड़ की पहली तारीख का है, जबकि सरकारी तौर पर जन्म की छुट्टी सरकार ने माघ में नियत की है, जो कि गलत है। सारी जाँच-पड़ताल करने पर यह मिलता है कि भक्त रविदास जी का जन्म हाड़ मास में ही हुआ था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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