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40. सृष्टि रचना

विश्व का हर धर्म सृष्टि रचना के बारे में अपना अपना सिद्धाँत प्रकट करता है। इनमें केवल एक समानता है कि सृष्टि की सृजना करने वाली कोई बड़ी शक्ति है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी भी सँसार के दूसरे धर्मों की तरह ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, उसके प्रकाश व विनाश को मानता है लेकिन दूसरे धर्म ग्रँथों की तरह तिथि, ऋतु, वार, युगों की सँख्या के चक्करों में नहीं पड़ता और न ही इस बात से सहमत है कि धरती की रचना कुछ निश्चित दिनों में हुई है। सात आसमान व सात धरतियों के सिद्धाँत को भी यह अस्वीकार करता है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी का उपदेश है कि सँसार की उत्पत्ति व विकास अकालपुरख (परमात्मा) के हुक्म में है। अकालपुरख सृष्टि का कर्त्ता व जगत का निर्माता भी है। कर्ते को उसकी कृत जान नहीं सकती तथा यह ब्रह्माण्ड अकालपुरख की खेल है। जब वह चाहता है, इस खेल का विस्तार करना शुरू कर देता है और जब उसका दिल चाहता है इसे समेटकर अपने में शामिल कर लेता है। श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी के अनुसार ब्रह्माण्ड से पूर्व सुन्न व धुँधकार की अवस्था थी, परमात्मा के हुक्म से उसमें से सृष्टि की उत्पत्ति हुई और इस उत्पत्ति को ‘इहु जगु सचै की है कोठड़ी सचे का विचि वासु’ के सँदर्भ में मानकर जीना चाहिए। सृष्टि रचना का जो प्रसँग श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में अंकित है, उस प्रसँग को भिन्न भिन्न धर्म ग्रँथों में दिए सृष्टि रचना के प्रसँग को निरर्थक सिद्ध करके इसे परमात्मा का अबूझ हुकम दर्शाया है। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान ने अपनी खोज प्रक्रियाओं द्वारा जो सिद्ध किया है, उसी सच को श्री गुरू ग्रंथ साहिब में उससे कहीं पहले रूपमान करके सिक्ख धर्म की सरदारी स्थापित कर दी गई है तथा इसे आधुनिक समय का धर्म मानते हुए बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इसे नमन करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। विज्ञान ने जो निष्कर्ष निकाले, उनमें अन्य धर्मों द्वारा स्थापित किए सृष्टि के पैदा करने के समय को नकारा है, उसकी प्रक्रिया को अस्वीकार किया है, सात आसमानों व सात धरतियों को मूल से ही रद्द किया है। विज्ञान द्वारा स्वीकार किया सृष्टि सृजना का प्रसँग श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी ने पहले ही स्थापित कर दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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