94. तम्बाकु का निषेध
श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी शिकार खेलने के विचार से अपने योद्धाओं को लेकर एक जँगल
की ओर जा रहे थे कि रास्तें में एक गाँव पड़ता था। यहाँ से विचित्र सी दुर्गन्ध आ रही
थी। इस दुर्गन्ध के कारण गुरू जी के घोड़े ने आगे बढ़ना बन्द कर दिया। आपने घोड़े को
ऐड़ लगाई और चाबुक भी मारा किन्तु घोड़ा आगे नहीं बढ़ा। गुरू जी ने तुरन्त सिक्खों को
आदेश दिया कि वह आगे जाकर देखें कि क्या कारण है जो हमारा घोड़ा आगे जाने को तैयार
नहीं है। तुरन्त आदेश का पालन किया गया। गाँव से वहाँ के निवासियों को बुला लिया गया।
गाँव के मुखिया ने गुरू जी को नमस्कार किया और विनती करने लगा– हे गुरू जी ! हम
किसान यहाँ केवल तम्बाकू की खेती करते हैं, जिससे दुर्गन्ध आती है किन्तु क्या करें।
यह फसल हमें अन्य फसलों से कहीं अधिक लाभ देती है। वैसे हम जानते हैं कि यह पदार्थ समाज के हित में नहीं किन्तु आय के साधन की विवशता के कारण इस विषैले पदार्थ का
उत्पादन करना ही पड़ता है क्योंकि हमारी इसके साथ जीविका संबंध रखती है। गुरू जी ने
उसकी बात धैर्य से सुनी और कहा: यदि आप समाज के हित को ध्यान में रखकर थोड़ी सा लालच
त्याग दें तो बहुत सी सामाजिक बुराईयों से बचा जा सकता है क्योंकि यह तम्बाकू तीन
शक्तियों का विनाश करता है, शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक। शरीर को प्रत्यक्ष और
अप्रत्यक्ष कई रोग लग जाते हैं। मस्तिष्क की चेतना शक्ति दुर्बल हो जाती है और
आत्मविश्वास से व्यक्ति कोई उचित निर्णय नहीं ले सकता। तम्बाकू सेवन से आज तक किसी
को लाभ होते हुए नहीं देखा गया। इसके विपरीत आर्थिक क्षति बहुत बड़ी होती है। इस
प्रकार धन के दुरूपयोग से व्यक्ति समाज में पिछड़ जाता है। तम्बाकू के उपयोग से जहाँ
वातावरण दूषित होता है, वहाँ व्यक्ति के मुँह से दुर्गन्ध आती है। इसके अतिरिक्त
तम्बाकू के सेवन करने वालों की लापरवाही से बहुत से स्थानों पर भँयकर अग्निकाण्ड हो
जाते हैं जिससे करोड़ों की सम्पति नष्ट हो जाती है। यह विवेकशील विचार सुनकर गाँव का
मुखिया बोला– गुरू जी ! आप ठीक कहते हैं। समाज में जागृति लाई जानी चाहिए और तम्बाकू
को समाज में से निषेध करने का अभियान चलाया जाना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव है तो हम
उत्पादन बन्द कर देंगे। इस प्रकार गुरू जी वहाँ से वापिस लौटकर दूसरे लम्बे रास्ते
से शिकार खेलने के लिए चले गये।