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90. खालसा सम्पूर्ण

एक बार श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी तथा उनके शिष्य राजस्थान के एक क्षेत्र से गुजर रहे थे। उसी रास्तें में एक संत दादू जी की समाधि थी। जब वे समाधि के पास से गुजरे तो श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी ने अपने तीर से संत की समाधि की तरफ सैल्यूट कर दिया। उस समय गुरू जी के शिष्य चुप रहे। परन्तु अपने स्थान पर पहुँचने पर उन्होंने गुरू जी के विरूद्ध गुरमता बनाया कि आज श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी ने एक बहुत बड़ा अपराध किया है। जिसका उनको दण्ड देना है। बस फिर क्या था। पाँच प्यारों ने उन पर लगा दोष सुनाया तथा उनके इस अपराध का उत्तर माँगा। इसके उत्तर में गुरू जी ने कहा– वास्तव में, मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि कहीं मेरा खालसा भेड़चाल तो नहीं चलने वाला। मेरा खालसा दृढ़ सँकल्प वाला है। बस मैं यही देखना चाहता था। परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है कि जो खालसा मुझे गलती करने पर पकड़ लेता है बल्कि मेरी की गई गलती का भेड़चाल की तरह अनुसरण नहीं करता। यह खालसा अब सम्पूर्ण हो चुका है। अब उसमें कोई ऋटि नहीं रही। परन्तु पाँच प्यारे इस सफाई पर भी नहीं माने। उन्होंने गुरू जी को सवा लाख रूपये दण्ड देने को कहा। बाद में यह दण्ड गुरू जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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