69. भाई कन्हैया जी
जब मुगल सेना से आमने-सामने होकर कई दिन से युद्ध हो रहा था। तब दोनों पक्षों के
सैनिक बुरी तरह से घायल होकर रणक्षेत्र में गिर रहे थे। ऐसे में एक सिक्ख उन घायलों
को पानी पिलाकर पुनः सुरजतर कर रहा था। तब उसको कुछ सिक्खों ने पकड़ लिया और बाँधकर
श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के समक्ष पेश किया और बताया कि आज हमने एक ऐसे व्यक्ति
को पकड़ा है जो कि शत्रुओं से मिला हुआ है और उनके घायलों को जल पीलाकर पुनः जीवनदान
दे देता है। यह आरोप सुनकर गुरू जी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से बांधे हुए सेवादार को
पूछा: क्या यह बात सत्य है ? उत्तर में आरोपी जवान ने कहा: मेरा कार्य तो जल पिलाना
ही है, मैं तो केवल पीड़ितों को जल पिलाता हूँ, मुझे तो शत्रु अथवा मित्र की पहचान
नहीं है क्योंकि मुझे सर्वत्र वह प्रभु ही दुष्टिगोचर होता है। यह सुनते ही गुरू जी
ने उसको गले से लगाया और कहा: वास्तव में आपने ही वह अमूल्य दृष्टि पाई है जो
बड़े-बड़े जपी, तपस्वियों को भी प्राप्त नहीं होती, आप अद्वैत में पहुँच गये हैं, यही
ब्रहम ज्ञान है और तुरन्त बन्धन खोलकर उनको मुक्त करते हुए कहा: आप यह सेवा जारी रखें
और यह लीजिए मरहम पटटी आप घायलों की प्राथमिक चिकित्सा भी किया करेंगे। यह थे भाई
कन्हैया जी।