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51. खालसे की माता

पश्चिम पँजाब के जिला रूहतास से एक सिक्खों का काफिला गुरू दर्शनों को श्री आनंदपुर साहिब आया। इस काफिले में रामू नामक एक भक्तजन अपनी युवा पुत्री साहिब देवी को लेकर गुरू दरबार में उपस्थित हुए। उन्होंने गुरू जी के चरणों में प्रार्थना की कि हे गुरू जी ! मेरी इस कन्या ने आपको दिल से स्वामी मान लिया हैं अतः वह चाहती है कि आप उसे वरण करें। अन्यथा वह समस्त जीवन कुँवारी रहेगी। उत्तर में गुरू जी ने कहा यह नहीं हो सकता। हमारा तो विवाह हो चुका है। इस पर भक्त रामू बोला यदि आप मेरी कन्या का वरण नहीं करेंगे तो फिर इससे कोई अन्य व्यक्ति विवाह नहीं करेगा क्योंकि स्थानीय लोग इसे आपकी अमानत जानकर माता जी कहकर सम्बोधन करते हैं। गुरू जी गम्भीर हो गये और उन्होंने समस्या का समाधान करते हुए कहा– यदि तुम्हारी कन्या कुँवारे डोले (सम्बन्ध रहित पत्नी) के रूप में हमारे साथ रह सकती है तो उसे हम अपने महलों में निवास की आज्ञा देते हैं। साहिब देवी ने तुरन्त सहमति प्रदान कर दी। इस प्रकार गुरू जी का एक और विवाह हो गया। कुछ समय के पश्चात एक दिन गुरू जी के समक्ष साहिब देवी जी ने अपने दिल की बात बताई कि मैं भी माँ कहलाना चाहती हूं। तब गुरू जी ने कहा– यह इच्छा एक नारी में स्वभाविक होती ही है। अतः समय आने पर हम तुमको एक ऐसा पुत्र देंगे जो कभी भी नहीं मरेगा और रहती दुनियाँ तक तेरा नाम अमर रहेगा। यह आश्वासन प्राप्त करके साहिब देवी जी सन्तुष्ट हो गई। जब गुरू जी ने खालसा पँथ की स्थापना की तो उन्होंने खालसा पँथ को माता साहिब देवी (कौर) की गोदी में डाल दिया और आशीष प्रदान की कि खालसा तुम्हारा पुत्र अमर रहेगा और मानवता के हितों की रक्षा निष्काम भाव से सदैव करता रहेगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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