46. लाहौरा सिंघ जी की शुद्धि
भादों का महीना था। रात को ठण्डी हवा चल रही थी। साहिब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी
छत पर विराज रहे थे कि साथ वाल मकान की छत से झगड़े की कुछ आवाज आई। यह लाहौरा सिंघ
का घर था। यह गुरू साहिब के साहिबजादों की देखभाल करता था। उनके पास ही माला सिंघ
का घर था। माला सिंघ व्यापारी था और साहूकार था। जरूरत पड़ने पर लाहौरा सिंघ ने माला
सिंघ से ऋण ले लिया। माला सिंघ सहनशील तथा नेक स्वभाव वाला व्यक्ति था। उसने सख्ती
नहीं की। कुछ समय के बाद माला सिंघ को व्यापार में कुछ कमी आ गई। घीरे-धीरे खाने
पीने की तँगी हो गई। तब उसने लाहौरा सिंघ जी से अपने रूपये माँगे, पर उसने मजाक में
टाल दिया। आज रात माला सिंघ उसके घर गया और अपने रूपये माँगे पर लाहौरा सिंघ ने न
देने के लिए मुँह चिढ़ाकर कहाः
सिक्ख सिक्ख का खाइ कर चिंता करीअहि दूर ।।
फिर ठहरकर बोलाः
खाणा पीणा हसणा गुरदीआ भुगताए ।।
जब माला सिंघ जी ने अपनी गरीब दशा बताई, तो लाहौरा सिंघ कहने लगाः
जैसा जिसका लेख है तैसी विधि बनि आए ।।
माला सिंघ ने कहाः
भाई दरगहि होन सजाइया झूठे अमल जिनाह ।।
हक मारा गहि मारीऐ रोए रोए पछुताई ।।
यह सुनकर लाहौर सिंघ ने बोलाः
लेखा कोई ने पुछई जा हरि वखसंदा ।।
गुरू जी यह सब कुछ सुन रहे थे वह वहीं से जोर से बोलेः
हक पराइआ नानका उसु सुअर उस गाइ ।।
गुरू पीरू हामा ता भरे जा मुरदारू न खाइ ।।
पहली पँक्ति जो लाहौरा सिंघ ने कही थी– सिक्ख सिक्ख दा खाइ कर
चिंता करीऐ दूर, इसे रद करने के लिए गुरू जी ने दूसरी पँक्ति ऊँचे स्वर में कहीः
खावै खुआई न द्रोह करि रहीऐ बंद हजूर ।।
फिर जब लाहौरा सिंघ ने जो दूसरी पँक्ति कही थीः कि खाणा पीणा
हंसणा गुरू दीआ भुगताए, इस पर गुरू जी ने झिड़की भरे स्वर में यह पँक्ति कहीः
जैसा करण करता करे तैसा गुर भुगताए ।।
गुरू जी के वाक्यों को सुनकर लाहौरा सिंघ काँप गया और नम्रता
धारण करके माला सिंघ से कहने लगा– सिंघ जी ! क्षमा करना, मैं कल आपका धन लौटा दूँगा,
मैं तो आपसे मजाक कर रहा था। सुबह होते ही लाहौरा सिंघ रूपये लेकर माला सिंघ जी के
घर चला गया और हाथ जोड़कर कर्जा उतार दिया। फिर तैयार होकर गुरू दरबार में गया। इस
प्रकार उपदेश दृढ़ करवाकर गुरू जी ने सर्व खालसे को उच्च जीवन जीने का उपदेश दिया।
जब संगतों को इस पूरे घटनाक्रम का पता चला तब सबने प्रसन्नता जाहिर की।