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45. उचित निर्णय

श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी एक बार अपने सैनिक अधिकारियों के साथ किला श्री आनंदगढ़ साहिब जी की दीवारों का निरीक्षण कर रहे थे। जब वह दीवारों के निकट से गुजरने लगे तो वहाँ एक काहन सिंघ नामक युवक जो कि राजमिस्त्री था, दीवार की मरम्मत करने में व्यस्त था। वह अपने कार्य में इतना एकागर होकर तल्लीन था कि उसे मालूम ही नहीं था कि कब वहाँ पर गुरू जी उसके निकट आ पहुँचे। उसने दीवारों की दरारों में बहुत वेग से मसाला व रेता फैंका, जिसके छीटें गुरू जी के स्वच्द वस्त्रों पर पड़े। वस्त्रों पर धब्बे पड़ गये। (यहाँ पर गुरू जी अपनी लीला कर रहे थे। वो यहाँ पर इस सिक्ख की सेवा से खुश होकर उसे कुछ देने आये थे।) इस पर विनोदी गुरू जी ने साथ में चलने वाले अधिकारियो से कहा: इसे एक-एक चाँटा लगायें। बस फिर क्या था, कोई भी पीछे न रहा। सभी ने जोर-जोर से, उसे एक-एक चाँटा लगाया। उन्होंने तुरन्त सेवकों से पूछा कि आप सभी ने किसके आदेश से युवक को चाँटा मारा है तो सभी ने उत्तर दिया कि आपके आदेश पर, गुरू जी ने तुरन्त कहा, ठीक है, अब मेरा दूसरा आदेश है, तुम में से ऐसा कोई व्यक्ति है जो इस युवक को अपनी बेटी का रिश्ता दे सकता हो ? सभी शान्त होकर इस अनोखे प्रस्ताव पर विचार करने लगे। किन्तु कुछ समय पश्चात एक काबुल के निवासी सिक्ख ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और अपनी लड़की का रिश्ता उस युवक से कर दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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