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44. ज्ञान की रहस्यमय कुँजी

एक दिन श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के दरबार में एक जिज्ञासू उपस्थित हुआ। उसने गुरू जी को बताया कि वह इस मानव जीवन को सफल करना चाहता है और साँसारिक झमेलों को कष्टों के कारण अनुभव करता है। अतः उसे आध्यात्मिक ज्ञान दें। गुरू जी उसकी अभिलाषा देखकर प्रसन्न हुए और उससे पूछा कि शिक्षा कहाँ तक प्राप्त की है ? उसने बताया कि में साँसारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाया, किन्तु मन में अभिलाषा है। गुरू जी ने कहा– आध्यात्मिक ज्ञान के लिए भी अक्षर ज्ञान का होना अति आवश्यक है। यदि तुम भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लो तो धीरे-धीरे हम तुम्हें आध्यात्मिक ज्ञान भी दुढ़ करवाते चले जाएंगे। बात इस प्रकार समझ लों कि विद्या के बिना सँसार में अँधकार है, ठीक उस तरह जैसे अँधे को दिन में भी दिखाई नही देता, वैसे ही बिना विद्या के, ज्ञान की दुनियाँ में जिज्ञासु अँधा है। यह जिज्ञासु सिक्ख विद्या प्राप्ति के लिए तैयार हो गया। गुरू जी ने उसे पढ़ाने के लिए एक शिक्षित सेवक की नियुक्ति कर दी और वह उसे नित्यप्रति वर्णमाला और सामान्य ज्ञान पढ़ाने लगा। जब इस सिक्ख को अक्षर बोध हो गया तो वह गुरूबाणी का अध्ययन करने लगा। एक दिन अध्यापक ने उसे श्री आनंद साहिब जी की बाणी की पोथी दी और पहली पंक्ति पढ़ाई और कहा– मेरे पीछे पढ़ो।

अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मैं पाइआ ।।

उस जिज्ञासू सिक्ख ने यह पँक्ति बहुत ही ध्यान से पढ़ी और बार-बार दोहराया और अध्यापक से कहने लगा बाकी कल पढेंगे, कहकर छुटटी कर गया और फिर कभी लौटकर पढ़ने नहीं आया। एक दिन उस जिज्ञासू पर गुरूदेव जी दुष्टि पड़ी तो उन्होंने उससे पूछा कि तुमने अपने अध्यापक से कहाँ तक शिक्षा प्राप्त कर ली है। इस पर वह कहने लगा– गुरू जी ! अध्यापक जी ने समस्त ज्ञान की कुँजी ही दे दी है। अब बाकी पढ़ने को रह ही नहीं गया। गुरू जी ने आश्चर्य से पूछा कि यह रहस्यमय कूँजी क्या है ? हमें भी बताओ। जिज्ञासू ने कहा– मुझे अध्यापक ने पढ़ाया है कि– अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मैं पाइआ ।। जब सतिगुरू जी प्राप्ति हो गई और उनके द्वारा आनंदमय अवस्था में पहुँच गये तो अब बाकी क्या पढ़ना है। जो मुख्य लक्ष्य की प्राप्ति के पश्चात भी रह गया है। अतः मैंने पढ़ना त्याग दिया और इसी आनंदमय जीवन में व्यस्त रहता हूँ। यह व्याख्या सुनकर गुरू जी अत्यँत प्रसन्न हुए और उस जिज्ञासू सिक्ख को गले से लगाया और कहा– तुमने वास्तविक सिक्खी कमाई है और उसके दर्शन किये हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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