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41. भाई नन्दलाल जी गोया

भाई नन्दलाल जी गोया फारसी भाषा के बहुत बड़े विद्धान थे। आप मुल्तान के नवाब के पास मीर मुन्शी का कार्यभार सम्भाले हुए थे। आपकी पत्नी व ससुराल के सभी सदस्य श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के अनुयायी थे। अतः आप उनके साथ एक बार गुरू जी के दर्शनों के लिए आये थे और गुरू जी की बहुमुखी प्रतिभा तथा उनके अध्यात्मवाद से इतने प्रभावित हुए कि आप सदैव के लिए गुरू के सिक्ख बनकर जीवन व्यतीत करने लगे। औरँगजेब ने सन 1676 में शहजादा मुअजम (बहादुरशाह) को अफगानिस्तान का गर्वनर बनाकर काबुल भेजा तो उसने मुल्तान के सूबे को कहकर भाई नन्दलाल जी को अपने साथ ले लिया और और अपना मीर मुँशी नियुक्त किया। वापसी पर सन 1678 में वह बहादुरशाह के ही साथ दिल्ली आ गए। एक बार औरँगजेब ने शाह इरान द्वारा भेजे गये पत्र का उत्तर तैयार करने के लिए अपने विशेष दरबारियों को कहा। किन्तु सम्राट को उनके उत्तरों से सन्तुष्टि नहीं हुई। उसने फिर अपने चारों पुत्रों को पुनः उत्तर लिखने को कहा। जब बहादुरशाह का मसौदा सम्राट ने देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुआ परन्तु वह विचारने लगा कि इतनी योग्यता बहादुरशाह में कहाँ से आ गई, हो न हो इसके पीछे किसी आलम का हाथ है। वह इस रहस्य को जानने को इच्छुक हुआ। जब उसे मालूम हुआ कि बहादुरशाह का मीर मुँशी जो कि एक हिन्दु है, उसके द्वारा उत्तर तैयार किया गया है तो उसने आदेश दिया कि ऐसे आलम-फाजल को दीन में लाया जाना चाहिए यानि कि इस्लाम स्वीकार करवाना चाहिए। जब भाई नन्दलाल जी को औरँगजेब की इच्छा का पता चला तो आप समय रहते वहाँ से तुरन्त श्री आनंदपुर साहिब जी के लिए प्रस्थान कर गये और श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी की शरण में पहुँचे। गुरू जी ने उनका भव्य स्वागत किया। यहाँ आप गुरू जी की संगत में रहने लगे। प्रतिदिन संगत करने के कारण वह गुरू जी के भक्त हो गये। स्नेह-भक्ति चरम सीमा तक पहुँच गई। आप दोनों वक्त गुरू जी के प्रवचन सुनते जिससे आपका दिल अति निर्मल हो गया। आप स्वयँ फारसी भाषा के महान कवि थे। अतः आपने गुरमति सिद्धान्तों की व्याखया करने वाली कई पुस्तकों की रचना भी की। इसके अतिरिक्त आप गुरू जी के प्यार में ऐसे रम गए कि उनकी स्तुति में उच्च स्तर की कविताएँ लिखी जो आज भी गुरूद्वारों में कीर्तन रूप में गाई जाती हैं। ठीक वैसे ही जैसे भाई गुरदास जी की धार्मिक रचनाएँ। गुरू घर में विशेष निर्देश है कि गुरूबाणी और इन दोनों विद्वानों के अतिरिक्त किसी अन्य की रचना कीर्तन रूप में नहीं गाई जा सकती। भाई नन्दलाल गोया जी की रचित 10 (दस) पुस्तकें उपलब्ध हैं। इनमें से 7 (सात) फारसी में और 3 (तीन) पँजाबी भाषा में है। आप अपनी रचनाओं में गोया तथा लाल उपनामों का प्रयोग करते थे।

पँजाबी की पुस्तकें:

1. जोगविगास
2. रहितनामा
3. तनखाहनामा

फारसी की पुस्तकें:

1. जिंदगी नामा
2. दीवानी गोया
3. तौसीफे-उ-सना
4. गँजनामा
5. जोत विगास
6. दस्तुरूल-इनासा
7. अरजुल-अलफाज

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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