9. गुरू पद मिलना
नौवें गुरू श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की शहीदी दिल्ली में हो गई थी। (इसका
विवरण श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के इतिहास में है)। गुरू मर्यादा अनुसार बाबा
बुडढा जी के पौत्र भाई रामकुँवर जी द्वारा यह कुलरीति सम्पन्न कर दी गई और श्री गुरू
तेग बहादर साहिब जी के आदेश अनुसार विधिवत घोषणा की गई कि श्री गुरू नानक देव जी के
दसवें उत्तराधिकारी आज से श्री गोबिन्द राय साहिब जी होंगे। इस गुरू पद समारोह में
दूर-दूर से संगतों ने भाग लिया। जिससे समारोह की चर्चा चारों और फैल गई। इस प्रकार
गोबिन्द राय जी गुरू पदवी से विभूषित कर दिये गये। आनंदपुर नगर, बिलासपुर के नरेश
भीमचन्द के राज्य में था। यह स्थान श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी ने मूल्य देकर
भीमचन्द के माता-पिता से खरीदा था। जब उसको गुरू जी के तिलक समारोह का पता चला, तब
वह अपने मँत्री को बुलाया। और गुप्त स्थान पर बैठकर पूछने लगा: मँत्री जी ! सुना है
कि हमारे राज्य में एक ऐसी गद्दी नशीनी हुई है जैसा कि इससे पूर्व हमारे यहाँ कभी
नहीं हुई। इस देश की इतनी प्रजा हमारे यहाँ कभी भी नहीं आई क्या ये समाचार दिल्लीपति
औरँगजेब के पास नहीं पहुँचेंगे ? जिसने देश को कँपा रखा है। जिसने इस गुरूगद्दी पर
बैठे हुए गोबिन्द राय के पिता को शहीद कर दिया, क्या वह हम से नहीं पूछेगा कि तुमने
अपने राज्य में ऐसा क्यों होने दिया ? मँत्री ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया: राजन !
मुझे समस्त समाचारों का पता है। मैंने अपने पुत्र को वहाँ पर भेजा था कि मुझे पूरा
विवरण मिल जाये। अतः वह प्रत्यक्षदर्शी है। राजन ! यह गद्दी श्री गुरू नानक देव जी
की है। जिनके सिक्ख दक्षिण में सिँहलदीप तक, पूर्व में आसाम तक, पश्चिम में
बलख-बुखारे तक और उत्तर में लद्दाख तक फैले हुए हैं। उनकी गद्दी के समारोह में भीड़
तो अवश्य ही होनी थी। क्योंकि वह पूज्य हैं। रही बात उनकी विचारधारा की तो वह
निर्भय हैं। औरँगजेब ने नौवें गुरू को शहीदी करवाया, इससे उनके अनुयायी अधिक दिलेर
और साहसी हो गये हैं, दबे नहीं। इसलिए मैंने विचार किया है कि इनको छेड़कर गले न पड़ने
दिया जाये। जैसे कि औरँगजेब ने नौवें गुरू जी के साथ किया है, इसके विपरीत यदि ये
बढ़े तो वह स्वयँ समझ लेगा। दसम गुरू अभी बच्चे हैं। समय ही बतायेगा कि वह कितने
प्रतिभावान निकलते हैं ? अभी आयु है ही कितनी ? यदि औरँगजेब हमसे पूछेगा तो हम
कहेंगे कि हजूर की और से कोई हुक्म आया ही नहीं था इसलिए आपकी राजनैतिक चाल का पता
न होने के कारण हमने कुछ नहीं किया। इसलिए हे राजन ! मैंने आपकी ओर से दस्तार नहीं
भेजी ताकि हम अपनी उदासीनता उस समय स्पष्ट करें। यह सुनकर नरेश सन्तुष्ट हो गया।
गुरू गद्दी पर विराजते ही गुरू गोबिन्द राय (सिंघ) जी ने गुरू
परम्परा की विचारधारा को भक्ति से शक्ति के परिवेश में बदल लेने का निर्णय कर लिया।
वैसे भी अत्याचारी शासन के विरूद्ध उन्हें घृणा होना स्वभाविक ही था। बचपन से ही
अस्त्र-शस्त्र तथा शस्त्र विद्या से उन्हें प्रेम था। उनकी बाल-क्रिड़ाएँ ऐसे ही
आयोजनों से संबंधित होती थीं। अब स्वयँ साधिकार होने पर उन्होंने अपने सेवकों में
भी शौर्य, उत्साह, समस्त मानवता के प्रति प्रेम की भावनाएँ भरना आरम्भ कर दिया। गुरू
जी ने सभी प्रकार के शस्त्र इत्यादि एकत्रित करने के लिए समस्त सिक्ख संगतों के लिए
एक विशेष आदेश जारी कर दिया कि हमारी प्रसन्नता केवल उन श्रद्धालूओं पर होगी जो
रणक्षेत्र में काम में आने वाली वस्तुएँ भेंट करेंगे। इस प्रकार गुरूगद्दी पर
विराजामन होते ही श्री गोबिन्द राय जी ने भविष्य में आने वाली सभी प्रकार की
समस्याओं का सामना करने के लिए तैयारियाँ करना शुरू कर दिया। जिसके अन्गर्तगत
उन्होंने अपने सिक्ख युवकों के भीतर शस्त्र विद्या, घुड़सवारी, तैराकी आदि
पुरूषतत्वों के खेलों की और रूचि बढ़ाना शुरू कर दिया। संगत को तैयार दर तैयार रहने,
शस्त्र धारण करने को कहा। इन आदेशों को सुनकर गुरूसिक्ख युवक अपने शस्त्र ओर अपना
यौवन गुरू जी के चरणों में समर्पित करने के लिए श्री आनन्दपुर साहिब जी पहुँचने लगे।
श्री आन्नदपुर साहिब जी मे गुरू जी ने युद्ध प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित कर दिये।
साहस भरने के लिए कई प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन करने लगे और विजयी युवकों को
प्रोत्साहन देने के लिए पुरस्कारों से समय-समय पर सम्मानित करते। इसके अतिरिक्त
आत्मनिर्भर बनने के लिए श्री आनंदपुर साहिब जी में ही शस्त्र व बन्दुकें ढालने का
कारखाना भी लगा लिया जिसके लिए दूसरे प्रान्तों से कुशल कारीगर मँगवाए। गुरू जी ने
दरबार में बैठने के नये नियम बनाए। जहाँ पहले माला लेकर संगत बैठती थी अब योद्धाओं
को शस्त्र धारण करके बैठने का आदेश दिया गया और स्वयँ भी ताज-कलगी इत्यादि राजाओं
जैसी वेशभूषा पहनकर सिँहासन पर विराजमान होने लगे। आप वीर रस की कविताओं में रूचि
लेने लगे। इस प्रकार आपका अधिकतर समय शूरवीरों की वारें सुनने में व्यतीत होने लगा।