6. गुरू परिवार की पँजाब वापसी
जब गुरू तेग बहादर साहिब जी का सारा परिवार पटना साहिब जी से पँजाब जाने लगा तो पटना
साहिब जी की संगत भी साथ उमड़ पड़ी। बहुत समझाने पर वे लोग 14 कोस दूर दानापुर से विदा
हुए। वहाँ पर एक वृद्ध माता ने स्नेह भरे दिल से गोबिन्द राय जी को खिचड़ी बनाकर
खिलाई। वहाँ पर आज माता की याद में हाड़ी साहिब नामक धर्मशाला है। कुछ वर्ष पूर्व
श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी भी इसी मार्ग से प्रचार करते हुए पटना साहिब से होते
पँजाब गये थे। अतः रास्ते में जो भी बड़े नगर थे उन नगरों में पहले से ही गुरू घर के
श्रद्धालूओं की विशाल सँख्या थी इसलिए जब नगरवासियों को ज्ञात हुआ कि गुरू जी का
परिवार वापिस पँजाब जा रहा है तो वे वहाँ कुछ दिन ठहरने को बाध्य करते और बालक
गोबिन्द राय के दर्शनों के लिए संगत उमड़ पड़ती। वहाँ दीवान का आयोजन किया जाता और
कीर्तन कथा का प्रवाह चलता। दानापुर क्षेत्र में भक्त गिरि नाम से एक सिक्ख थे जो
गुरमति का प्रचार किया करते थे। वे पहले बौद्ध सन्यासी हुआ करते थे। किन्तु गुरू
हरिराय साहिब जी से सिक्खी धारण करके सिक्ख धर्म के प्रचार में लीन हो गये थे। वे
भी गुरू परिवार का स्वागत करने के लिए पहुँचे। इस प्रकार दानापुर से आए, डुमरा और
बकसर आदि स्थानों पर ठिकानों पर ठहरते हुए गुरू-परिवार छोटे मिरजापुर पहुँचा। वहाँ
पर गुरू की सिक्खी काफी फैली हुई थी। संगत में बड़ा उत्साह था। अतः उन्होंने आग्रह
किया कि वे कुछ दिन उन्हें सेवा का अवसर प्रदान करें और सतसँग से उन्हें कृतार्थ करें।
मामा कृपालचंद जी संगत को बहुत मान देते थे। अतः वे संगत के आग्रह पर तीन दिन वहीं
सतसँग द्वारा स्थानीय संगत को निहाल करते रहे। तदपश्चात गुरू परिवार चलकर बनारस (काशी)
पहुँचा। वहाँ सिक्खो की भारी सँख्या थी। भाई जवेहरी मल जी वहीं पर सिक्खी प्रचार
करते थे। वे दर्शनों को आए। वहीं पर जौनपुर की संगत भी दर्शन को आ गई। इस प्रकार
गुरू परिवार लखनौर साहिब पहुँचा। वहाँ पर अँदाजन सभी कुओं का जल खारा था। लोग मीठे
जल के लिए कोसों पैदल चलते थे। लोगों का कष्ट देखकर एक दिन माता गुजरी जी ने एक
विशेष स्थान चुनकर वहाँ पर एक कुँआ खोदने का आदेश दिया। जैसे ही मजदूरों ने स्थान
खोदा तो नीचे से एक प्राचीन काल से दबा हुआ कुँआ निकला। इस पर से मिटटी हटाई गई तो
इसमें से प्रभु कृपा से मीठा जल प्राप्त हुआ। इस कुँए का नाम वहाँ की जनता ने माता
जी के नाम पर रख दिया।