5. सौभाग्यवती रानी विश्वम्भरा
मैणी गोत्र-खत्री जागीरदार, राजा उपाधि से विभुषित फतेहचन्द, पटना साहिब नगर की घनी
आबादी में एक विशेष हवेली में निवास करते थे। प्रभु का दिया इनके पास सभी कुछ था
परन्तु सन्तान सुख नहीं था। उनकी पत्नी रानी विश्वम्भरा बस इसी चिन्ता में खोई रहती
थी। जब वह बालक गोबिन्द राय जी को अन्य बच्चों के साथ खेलकुद में व्यस्त देखती तो
उसका मन भर आता और उसके दिल में ममता अँगड़ाइयां लेने लगती परन्तु वह साहस नही बटोर
पाती थी कि गोबिन्द राय को अपने आँगन में बुलाये। किन्तु उसके दिल में गोबिन्द राय
की मोहिनी मूरत उतरती ही जाती थी वह न चाहकर भी गोबिन्द राय की ओर खिंची चली जाती।
गोबिन्द राय का आकर्षण उनकी ममता की भूख को उभारता रहता। अतः माँ बनने के उपाय खोजने
में एक दिन अपने पति राजा फतेहचन्द को साथ लेकर गँगा के घाट पर पण्डित शिवदत के पास
पहुँची।
विश्वम्भरा ने अपनी दयनीय व्यथा पण्डित जी को सुनाई और कहा: कि
वे ज्योतिष विद्या के महान ज्ञाता हैं वे कृप्या बताये कि उसकी कोख कब हरी होगी।
पण्डित जी ने बहुत ध्यानपूर्वक रानी जी का हाथ देखा और भविष्य पढ़ा और बताया कि उसके
भाग्य में संतान सुख नहीं है। इस पर रानी रूदन करने लगी। दया दृष्टि से परिपूर्ण
पण्डित जी बोले: हाँ ! एक उपाय है यदि श्री गुरू नानक देव जी के नोवें
उत्त्तराधिकारी श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के पुत्र गोबिन्द राय, जो कि अभी नन्ही
आयु के हैं। वो अगर आपकी प्रार्थना सुन लेते हैं तो आपको पुत्र प्राप्ति का वरदान
मिल सकता है क्योंकि वह बालरूप में पूर्ण पुरूष हैं। यह सुनकर फतेहचन्द ने प्रश्न
किया: कि उनको कैसे अनुभव हुआ कि वह बालक पराक्रमी बालक है। उत्तर में पण्डित शिवदत
जी ने कहा: कि वे जानते हैं कि वे शुद्ध राम भक्त है। वे जब-जब रामचन्द्र जी की
अराधना में बैठता है तो यही बालक उनके ध्यान में राम रूप में प्रकट हो जाता है। अतः
वह बालक नहीं, उसके लिए साक्षात परम पुरूषोतम राम ही है। रानी विश्वम्भरा ने पण्डित
जी की बात का समर्थन किया और कहा: पण्डित जी बिल्कुल ठीक कहते हैं वह बालक गोबिन्द
राय कोई दिव्य ज्योति है। इस प्रकार यह दम्पति नई उमँग लेकर घर लौट आया। रानी
विश्वम्रा मन ही मन गोबिन्द राय की छवि का ध्यान करके आत्मविभोर होने लगी। एक दिन
उसने विशेष रूप में मन एकागर करके प्रभु चरणों में प्रार्थना प्रारम्भ की। तभी उसके
कानों में मधुर स्वर गुँजा माँ-माँ भुख लगी है। और दो नन्ही बाहें उसके गले में डाले
हुए आलिँगन करते हुए गोबिन्द राय बोले: कि माँ मैं आ गया हूं आखें खोलो और पलक झपकते
ही वे उनकी गोदी में जा बैठे। रानी विश्वम्भरा अपनी कल्पना साकार होते देखकर हर्षित
हो उठी। उसका रोम-रोम मातृत्व से पुलकित हो गया। उसे अहसास हुआ वह चिर सिँचित कामना पा गई है। उसने गोबिन्द को
अपने गले से लगाया और प्यार में तल्लीन हो गई। उसके नेत्र में स्नेह भरे आंसुओं की
धारा बह निकली। उसे कुछ होश आई तो गोबिन्द राय का मस्तिष्क चूमा और प्यार से सराहने
लगी। फिर पूछा: बेटा क्या खाओगे अभी तैयार किये देती हूँ। उत्तर में गोबिन्द राय ने
कहा: मां आपने जो रर्साई में तैयार रखा है वही पूरी-चने ठीक रहेंगे। अब रानी को
आश्चर्य हुआ कि उन्हें कैसे मालूम कि उसने आज क्या बनाया है। उत्तर में गोबिन्द राय
जी कहने लगे: कि उन्हें उन पकवानों की सुगन्ध जो आ रही थी। जैसे ही माता जी पकवान
लेने रसोई में गईं वैसे जी गोबिन्द राय जी ने बाहर आँगन में खड़े बच्चों को संकेत से
भीतर बुला लिया बच्चे उधम मचान लगे। माता (रानी) विश्वम्भरा जी की हवेली में एक छोटा
सा बाग भी था, जिसमें भाँति-भाँति के फल समय अनुसार लगते रहते थे। उन दिनों अमरूद
तथा बेर का मौसम था जिसे बच्चे निशाना लगाकर गुलेल अथवा तीर से तोड़ने की कला में
व्यस्त थे। आज सँयोग से गोबिन्द राय अपनी मित्र मण्डली के साथ वहाँ आ निकले और
अराधना में लीन माँ की गोदी में जा विराजे। तभी माता पूरियाँ और चने लाई ओर सभी
बच्चों में बाँट दिया। गोबिन्द राय ने माता जी से कहा: माँ आप चिन्ता न करें मैं
आपका पुत्र हूँ। मैं प्रतिदिन आपके पास आता रहूँगा और वह अन्य बालकों के साथ
आमोद-प्रमोद करते गँगा किनारे की ओर चले गये और माँ (रानी) उनका अलौकिक सौन्दर्य
निहारती ही रह गई। श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी को पँजाब में गये बहुत लम्बा समय
होने पर बालक गोबिन्द राय ही को पिता जी की याद सताने लगी वे जब भी घर लौटते तो माता
जी से प्रश्न करते- माता जी अब तो बहुत दिन हो गये हैं पिता जी का कोई सन्देश नहीं
आया वह हमें कब वापस बुला रहे हैं ? इस पर माता गुजरी जी या दादी माँ नानकी जी कह
देती बेटा तुम्हारे पिता जी नया नगर बसाने में व्यस्त हैं जैसे ही सभी कार्य
सम्पन्न हो जायेगें वे तुरन्त अपने पास बुला लेंगे। इस बीच गुरू जी की ओर से
समय-समय पर पत्र आते रहते परन्तु उनमें कुछ समय और प्रतीक्ष करने को कहा जाता इस
प्रकार बालक गोबिन्द राय जी की आयु लगभग छः वर्ष होने लगी तो उनको पँजाब से पिता जी
का पत्र प्राप्त हुआ कि वे सब सेवकों सहित पँजाब लौट आयें। मामा कृपालचन्द जी ने सभी
सेवकों को आदेश दिया कि तैयारी की जाये क्योंकि वे पँजाब जा रहे हैं। यह समाचार
फैलते ही कि गुरू जी का परिवार पँजाब जा रहा है रानी विश्वम्भरा तथा उसका पति
फतेहचन्द वियोग में रूदन करने लगे। तभी बालक गोबिन्द नित्य की तरह आकर माता (रानी)
विश्वम्भरा की की गोदी में बैठ गये। और बोले: कि माँ, तू मेरे लिए इतनी बैचेन है ?
मैं तुझ से अलग कभी भी नहीं हो सकता, मैं तो तेरे दिल, मन, मस्तिषक के कोने-कोने
में रमा रहूंगा। माँ इस सँसार में मुझे बहुत से कार्य करने हैं। दुखी मानवता का
उद्धार करना है, इसलिए मैं जा रहा हूं। तू चिन्ता न कर। माँ (रानी) गद-गद होकर आँसू
बहाने लगी। और बेटे गोबिन्द राय का सुन्दर मुख चुमती हुई प्यार करती हुई बोली: बेटा
गोबिन्द मुझसे रहा नही जायेगा। मैं जी नहीं सकूँगी। गोबिन्द राय भी द्रवित नेत्रों
से माँ के गले लिपट गये और बोले: कि माँ तू विश्वास रख मैं नित्य तेरे आँगन में
बालकों की मण्डली सहित आया करूँगा और उन्हीं में तू मुझे पाएगी। इस प्रकार रानी
विश्वम्भरा आश्वस्त हो गई और गोबिन्द राय पँजाब के लिए प्रस्थान कर गये।