4. गोबिन्द राय की निर्भीकता
एक दिन पटना साहिब नगर के मुख्य बाजार में से स्थानीय नवाब की सवारी गुजरनी थी। उन
दिनों की परम्परा के अनुसार आगे-आगे नगाड़ची ऊँचे स्वर में चिल्ला रहा था– बा-इज्जत,
बा-मुलाहिजा होशियार पटना के नवाब तशरीफ ला रहे हैं यह वाक्य सुनते ही स्थानीय लोग
अपने-अपने स्थान पर पँक्तिबद्ध होकर सिर झुकाकर प्रणाम करने की मुद्रा मे खड़े हो गये।
किन्तु गोबिन्द राय को यह सब बहुत विचित्र सा लगा कि जनसाधारण एक व्यक्ति विशेष के
सम्मान में अकारण नतमस्तक होकर पराधीनता प्रकट करें उन्होंने तुरन्त अपने साथी बच्चों
को इसके विपरीत करने का निर्देश दिया। तब क्या था, सभी बालक अंगरक्षकों को मुँह
चिढ़ाने लगे और उनका परिहास करते हुए ऊधम मचाने लगे। जब उनके अंगरक्षक पकड़ने दौड़े तो
वे इधर-उधर भाग गये। नवाब रहीमबख्श ने पूछताछ की कि वे बालक कौन थे ? क्योंकि पहले
कभी ऐसा नहीं हुआ था कि कोई व्यक्ति अथवा बालक उनके अंगरक्षकों की अवहेलना करे और
उनको चुनौती दे। जब उसे ज्ञात हुआ कि उन बालकों की अगुवाई श्री गुरू तेग बहादर
साहिब जी का सुपुत्र श्री गोबिन्द राय कर रहा था तो वे उनकी निभर्यता के कारण
श्रद्धा में आ गया और उसने वह उपवन (सुन्दर वाटिका) को गुरू घर को समर्पित कर दिया
जिसमें कुछ वर्ष पूर्व श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी ने विश्राम किया था।