33. श्री पाउँटा साहिब जी में साहित्य
की उत्पति
इस्लाम में सँगीत को हराम माना गया है। अतः औरँगजेब ने अपने शासनकाल में आदेश जारी
करके राग-गायन वर्जित कर दिया और राज्य को सम्पूर्ण इस्लामी घोषित कर दिया।
कला-सँगीत पर प्रतिबन्ध लगाते ही, बहुत से सँगीतकार, कवि, साहित्यकार इत्यादि
बेरोजगार हो गये। जब उन्हें मालूम हुआ कि श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी बहुत बड़े कला
प्रेमी हैं और कवियों तथा सँगतीतज्ञों का सम्मान करते हैं अथवा धन दौलत देकर निवाजते
हैं तो बहुत से कवि, सँगीतकार और साहित्यकार आपको खोजते-खोजते आपकी शरण में श्री
पाउँटा साहिब नगर में आ गये। इधर श्री गुरू नानक के घर में कीर्तन को प्रमुखता
प्राप्त थी। गुरू जी कीर्तन को प्रभु से सुमेल का सर्वोत्तम साधन मानते थे और वह
स्वयँ मृदँग, तबला व सिरँदा बहुत ही सुन्दर बजाते थे, जैसे ही देश में राग सुनने व
गायन करने वालों को दण्डित किया जाने लगा तो कई रागी श्री पाउँटा साहिब जी में आपके
दरबार की शोभा बढ़ाने लगे। श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी जहाँ शस्त्र विद्या मे निपुण
थे वहीं कीर्तन के भी आशिक थे। आप जी सँस्कृत, हिन्दी, अरबी, फारसी तथा पँजाबी के
उच्चकोटि के विद्वान होने के कारण अन्य विद्वानों को बहुत प्रोत्साहित करते थे।
इसलिए आपके दरबार में 52 कवि थे जो कि आपको समय-समय पर वीर रस की कविताएँ सुनाने का
कार्य करते थे। आपने जनसाधारण तथा अपने सैनिकों में वीरता के सँचार के लिए नया
साहित्य रचने के आदेश दिये और कुछ पुरातन लोक कथाओं को नये अन्दाज में रचकर योद्धाओं
में नये साधन एक नये प्रयोग के रूप में उपलब्ध कराये जिससे वीरता की प्रेरणा मिल सके।
आप श्री पाउँटा साहिब जी के रमणीक स्थल जो कि यमुना के तट पर एकान्तवास का अभ्यास
करवाते थे, परन्तु भाते, यहीं बैठकर आप स्वयँ एकागर होकर प्रभु चरणों में लीन होते
तो आपके अन्तःकरण में से काव्य फूट निकलता। यहीं पर आप जी ने अकाल स्तुति, जापु
साहिब इत्यादि बहुत सी रचनाएँ रचीं। गुरू जी ने समस्त 52 कवियों की आजीविका की सारी जिम्मेवारी अपने
ऊपर ली हुई थी। आप जब किसी कवि की रचना पर प्रसन्न हो जाते तो उसको इनाम के तौर पर
खुले दिल से दौलत देते। इन कवियों में आपके पास कुछ मुसलमान कवि भी कार्यरत थे। गुरू
जी की उदार मानसिकता तथा विद्या प्रेम को देखते हुए भारत के विभिन्न विद्या केन्द्रों
से अनेक विद्वान और काव्य प्रवीण व्यक्तित्व गुरू दरबार में लगातार आने लगे। कुछ कवि
तो गुरू जी के आश्रम में स्थायी तौर पर रहने लगे। कुछ थोड़े समय के लिए आकर श्री
पाउँटा साहिब नगर में रहे और गुरू इच्छा अनुरूप ज्ञान सँकलन किया। गुरू जी का विद्या
दरबार इतना विख्यात हो गया था कि कुछ कविगण केवल तीर्थ की तरह दरबार में आते, ज्ञान
की चर्चा करते और लौट जाते। तात्पर्य यह कि गुरू दरबार के स्थायी रहने वाले कवियों
के अतिरिक्त भी वहाँ कवियों का निरन्तर आवगमन बना रहता था। दरबार से कोई खाली हाथ
नहीं लौटता था। गुरू जी उन्हें अवश्य ही धन, वस्त्र, कोई बहुमूल्य वस्तु इत्यादि
इनाम में देते और उन्हें सम्मानित करते। इन कवियों की संख्या 52 से 125 के बीच तक
मानी गई है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि अनेक अन्य कवि अस्थायी तौर पर भी बुलाये
जाते थे। सबने मिलकर इतनी विशाल रचनाएँ लिखीं कि पाँडुलिपियों का सँयुक्त वजन नौ मन
बोझ हो गया और ग्रँथ का नाम विद्याधर रखा गया। श्री आनंदपुर साहिब जी पर मुगल
आक्रमण के उपरान्त जब गुरू जी ने अपने परामर्शदाताओं के दबाव में आकर श्री आनंदगढ़
साहिब जी का किला छोड़ा और बाद में शाही सेनाओं ने विश्वासघात किया तो विद्याधर
ग्रँथ शत्रुओं के कब्जे में चला गया और उन्होंने उसे नष्ट कर दिया।