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32. बारात का प्रस्थान

इन्हीं दिनों भीमचँद के लड़के अजमेरचँद का विवाह निश्चित हो गया। भीमचँद बारात लेकर गढ़वाल की और चला। रास्तें में श्री पाउँटा साहिब नगर पड़ता था। इसलिए भीमचँद के मन का चोर एक बार फिर खुराफात पर आमदा हुआ। बारात में उसके साथ दस बारह अन्य पहाड़ी राजाओं की सेनाएँ भी थी। भीमचँद की अपनी सेना तो थी ही, इस प्रकार कहिलूर नरेश इस समय को अधिक सबल और शक्तिशाली समझ रहा था। अतः उसने इरादा बनाया कि मार्ग में बिना ललकारे वह सेनाओं की सहायता से श्री पाउँटा साहिब नगर व गुरू जी के आश्रम को लूट लेगा। यदि गुरू जी की ओर से सैनिक विरोध हुआ तो भी उन्हें पराजित करना सहज होगा क्योंकि शक्ति सन्तुलन उसके पक्ष में है। दुष्ट की दुष्टता को पहले से ही जानकर दमन कर देना महापुरूषों की विशिष्टता होती है। गुरू गोबिन्द सिंघ जी ने भीमचँद के मन का चोर जान लिया, क्योंकि वो तो अर्न्तयामी थे। अतः उसे सन्देश भिजवा दिया कि तुम्हें नाहन राज्य से गुजरकर श्रीगनर जाने की छूट नहीं दी जा सकती। यदि तुम जबरदस्ती ऐसा करोगे तो तुम्हें हमारी सेनाओं से युद्ध करके ही आगे बढ़ना होगा। गुरू जी के सुचेत होने की सूचना पाते ही भीमचँद घबरा गया। उसकी योजना के अनुसार लूटपाट का कार्यक्रम बनाया था किन्तु गुरू जी की धमकी पाकर हताहत सा भीमचँद बारात का मार्ग बदल लेने को विवश हुआ। यह दूसरा मार्ग यमुनानगर से हरिद्वार होता हुआ श्रीगनर को जाता था जो कि लगभग 50 कोस लम्बा था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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